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________________ -चतान्द्रसूरिस्मारक ग्रन्थ इतिहासश्रीलक्ष्मणीतीर्थप्रतिष्ठा-प्रशस्तिः वर्तमान लक्ष्मणी -- तीर्थाधिपश्रीपद्मप्रभस्वामिजिनेश्वरेभ्यो नमः। यह तो अनुभवसिद्ध बात है कि जहाँ जैसी हवा एवं जैसा श्रीविक्रमीयनिधिवसनन्देन्दुतमे वत्सरे कार्तिकाऽसिताऽमावस्यां खानपान व वातावरण होता है वहाँ रहनेवाले का स्वास्थ्य भी शनिवासरेऽतिप्राचीने श्रीलक्ष्मणीजैनमहातीर्थे बालकिरातस्य क्षेत्रतः वैसा ही रहता है। आज के वैद्य एवं डाक्टरों का भी अभिप्राय है श्रीपद्मप्रभजिनादितीर्थेश्वराणामनुपमप्रभावशालिन्योऽतिसुन्दरत कि जहाँ की हवा, पानी एवं वातावरण शद्ध होगा वहाँ पर रहनेवाले माश्चतुर्दशप्रतिमाः प्रादुरभवन् / तत्पूजार्थ प्रतिवर्षमेकसप्ततिरूप्यकसं- व्याक्त प्रफुल्लत रहग। प्रदानयुतं श्रीजिनालयधर्मशालाऽऽरामादिनिर्माणार्थ लक्ष्मणी यद्यपि पहाड़ी पर नहीं है तथापि वहाँ की हवा श्वेताम्बरजैनश्रीसंघस्याऽऽलिराजपुराधिपतिना राष्ट्रकूटवंशीयेन के.सी. पानी तथा इतने मधुर एवं सुहावने लगते हैं कि वहाँ से हटने का आई.ई. इत्युपाधिधारिणा सर् प्रतापसिंह बहादुर भूपतिना पूर्वपश्चिमे दिल ही नहीं होता। पानी इतना पाचनशक्तिवाला है कि वहाँ पर 511 दक्षिणोत्तरे 611 फुटपरिमितं भूमिसमर्पणं व्याधायि, रहनेवालों का स्वास्थ्य अत्यंत सुंदर रहता है। तीर्थरक्षार्थमेकं सुभट (पुलिस) नियोजितञ्च / इस समय तीर्थ की स्थिति बहुत अच्छी है। दर्शनार्थ आने तत्राऽलीराजपुरनिवासिना श्वेताम्बरजैनसंघेन धर्मशालाऽऽराम- के लिये दाहोद स्टेशन से मोटर द्वारा आलीराजपुर आना पड़ता कूपद्वयसमन्वितं पुरातनजिनालयस्यजीर्णोद्धारमकारयत् / प्रतिष्ठा है; वहाँ पर यात्रियों को हर एक प्रकार की सुविधा प्राप्त है। चास्य वेदनिधिनन्देन्दुतमे विक्रमादित्यवत्सरेमार्गशीर्षशुक्लदशम्यां बैलगाड़ी अथवा मोटर द्वारा आलीराजपुर से लक्ष्मणी जाना पड़ता चन्द्रवासरेऽतिबलवत्तरे शुभलग्ननवांशेऽष्टाह्निकमहोत्सवैः, है। वहाँ पर मुनीमजी रहते हैं। यात्रियों को रहने के लिये कमरे, सहाऽऽलीराजपुरजैनश्रीसंघेनैव सूरिशक्रचक्रतिलकायमानानां रसोई बनाने के लिये बर्तन और सोने-बैठने के लिये बिछौने श्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छावतंसकानां विश्वपूज्यानामाबालब्रह्मचारिणां आदि की सुविधायें पीढ़ी की ओर से दी जाती है। प्रभुश्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वराणामन्तेवासीनां व्याख्यानवाचस्पति लक्ष्मणीतीर्थ का उद्धार आचार्य श्रीमद्विजयतीन्द्रसूरीश्वरजी -महोपाध्यायविरुधारिणा श्रीमद्यतीन्द्रविजयमुनिपुङ्गवानों के संपर्ण प्रयत्नों से ही संपन्न हुआ और यह एक ऐतिहासिक करकमलेनाऽकारयत् / / चीज बन गई है। चढ़ती-पड़ती के क्रमानुसार लक्ष्मणी पुन: उद्धरित हुआ। - श्री राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ से साभार. इस तीर्थ के उद्धार का संपूर्ण श्रेय मदि किसी को है तो वह श्रीमद्विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज को है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211865
Book TitleLakshmani Tirth Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantvijay
PublisherZ_Yatindrasuri_Diksha_Shatabdi_Smarak_Granth_012036.pdf
Publication Year1999
Total Pages3
LanguageHindi
ClassificationArticle & Tirth
File Size448 KB
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