________________ रीवा के कटरा जैन मन्दिर की मूर्तियों पर प्रशस्तियाँ 345 4. 1872 की दो प्रतिष्ठित मूर्तियों पर पूर्ण विवरण नहीं है / फिर भी वहां चौधरी उमराव, मधु कुंवर, बहादुर कुंवर के नामों के साथ अमान सिंह का भी उल्लेख है। 5. एक पद्मासन मूर्ति पर केवल 1568 मूलसंघे वैसाख सुदी 9 प्रणमतिश्री भर उत्कीर्ण है। 6. अन्य अनेक मूर्तियों पर केवल तिथि और संवत् मात्र अंकित है। जैन' ने छतरपुर के मंदिरों की मूर्तियों के लेखों का संकलन किया है। उन लेखों को देखने पर ज्ञात होता है कि रीवा को मूर्तियों की तुलना में वहां मूर्तियों की प्रतिष्ठा का समय-परिसर सं० 1102-1980 तक जाता है / पर रोवा में प्राप्त 1694, 1713 एवं 1971-72 के लेखों के समान ही छतरपुर की तत्कालीन मूर्तियों पर लेख पाये जाते हैं। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि सभवतः ये मूर्तियां उसी क्षेत्र से यहां आई हों। इस विषय में पुरातत्वतों एवं इतिहास संदर्भ हमारा शरीर स्थूल है, किंतु इसमें गजब की सूक्ष्मता है। हमारा मस्तिष्क शरीर का केवल दो प्रतिशत भाग है लेकिन इसमें एक खरब 'न्यूरान्स' हैं। हमारे शरीर में साठ खरब कोशिकायें हैं / ये स्वनियंत्रित हैं। शरीर में विद्यमान ज्ञानतंतुओं के जाल को यदि एक रेखा में बिछाया जाय, तो वे एक लाख वर्गमील तक पहुंच जाते हैं। ये ज्ञानतंतु हमारी विद्युत् के संवाहक हैं / हम अपने शरीर को अभी भी पूरे तौर से नहीं जान पाये हैं। जब हम स्थूल शरीर को ही पूरा नहीं जानते, तो फिर सूक्ष्म शरीर की बात तो दूर ही रही। आत्मा के जानने की बात तो और भी सुदूर होगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org