________________ रामपुत्त या रामगुत्त : सूत्रकृताङ्ग के सन्दर्भ में ? सुसङ्गत बैठती है / इसिभासियाई की भूमिका में भी सूत्रकृताङ्ग के टीकाकार शीलाङ्क ने जो रामगुप्त पाठ दिया है, उसे असङ्गत बताते हुए शूब्रिङ्ग ने 'रामपुत्त' इस पाठ का ही समर्थन किया है।' यद्यपि स्थानाङ्ग सूत्र के अनुसार अन्तकृतदशा के तीसरे अध्ययन का नाम 'रामगुत्ते' है। किन्तु प्रथम तो वर्तमान अन्तकृतदशाङ्ग में उपलब्ध अध्ययन इससे भिन्न है, दूसरे यह भी सम्भव है कि किसी समय यह अध्ययन रहा होगा और उसमें रामपुत्त से सम्बन्धित विवरण रहा होगा-यहाँ भी टीकाकार की भ्रान्तिवश ही 'पुत्त' के स्थान पर गुत्त हो गया है / टीकाकारों ने मूल पाठों में ऐसे परिवर्तन किये हैं। ___इन सब आधारों पर हम यह कह सकते हैं कि सूत्रकृताङ्ग में उल्लिखित रामपुत्त ( रामगुप्त ) समुद्रगुप्त का ज्येष्ठ पुत्र रामगुप्त न होकर पालि त्रिपिटक साहित्य में एवं इसिभासियाइं में उल्लिखित रामपुत्त ही है, जिससे बुद्ध ने ध्यान-प्रक्रिया सीखी थी। 1. Isibhasiyaim (A Jaina Text of Early Period), Introduction, p. 4 (Published by L. D Institute of Indology, Ahmedabad). 2. अंतगड़दसाणं दस अज्झयणा पण्णता, तं जहा नमि मातंगे सोमिले, रामगुत्ते सुदंसणे चेव / जमाली य भगाली य, किंकिमे पल्लए इ य // 1 // फाले अंबड़पुत्ते य, एमए दस आहिया / -स्थानाङ्गसूत्र, 755 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org