Book Title: Ramputta ya Ramgutta Sutrakrutanga ke Sandarbh me Author(s): Sagarmal Jain, M A Dhaky Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_2_Pundit_Bechardas_Doshi_012016.pdf View full book textPage 1
________________ रामपुत्त या रामगुत्त : सूत्रकृताङ्ग के सन्दर्भ में ? . सागरमल जैन मधुसूदन ढाको सूत्रकृताङ्ग के तृतीय अध्ययन में कुछ महापुरुषों के नामों का उल्लेख पाया जाता है। उनमें रामगुत्त ( रामपुत्त) का भी नाम आता है।' डा० भागचन्द्र जैन 'भास्कर' ने "सम् एथिकल आस्पेक्ट आफ महायान बुद्धिज्म ऐज़ डिपिक्टेड इन सूत्रकृताङ्ग" नामक अपने निबन्ध में सूत्रकृताङ्ग में उल्लिखित रामगुप्त की पहचान समुद्रगुप्त के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में की है। समुद्रगुप्त के ज्येष्ठपुत्र रामगुप्त ने चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त एवं प्रद्मप्रभ की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित करवाई थीं, इस तथ्य की पुष्टि विदिशा के पुरातात्त्विक सङ्ग्रहालय में उपलब्ध इन तीर्थङ्करों की मूर्तियों से होती है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि रामगुप्त एक जैन नरेश था, जिसकी हत्या उसके ही अनुज चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने कर दी थी। किन्तु सूत्रकृताङ्ग में उल्लिखित रामगुप्त की पहचान गुप्त-सम्राट् समुद्रगुप्त के पुत्र रामगुप्त से करने पर हमारे सामने अनेक प्रश्न उपस्थित होते हैं। सबसे प्रमुख प्रश्न तो यह है कि इस आधार पर सूत्रकृताङ्ग की रचना-तिथि ईसा की चौथी शताब्दी के उत्तरार्द्ध एवं पाँचवीं शती के पूर्वार्द्ध तक चली जाती है, जबकि भाषा, शैली एवं विषयवस्तु सभी आधारों पर सूत्रकृताङ्ग ईसा पूर्व की रचना सिद्ध होता है। सूत्रकृताङ्ग में उल्लिखित रामगुप्त की पहचान समुद्रगुप्त के पुत्र से करने पर या तो हमें सूत्रकृताङ्ग को परवर्ती रचना मानना होगा अथवा फिर यह स्वीकार करना होगा कि सूत्रकृताङ्ग में उल्लिखित रामगुप्त समुद्रगुप्त का पुत्र रामगुप्त न होकर कोई अन्य रामगुप्त है । हमारी दृष्टि में यह दूसरा १. आहंसु महापुरिसा पुट्विं तत्ततवोधणा । उदएण सिद्धिमावन्ना तत्य मंदो विसीयति ।। अभुंजिया नमी विदेही रामगुत्ते य भुंजिया बाहुए उदगं भोच्चा तहा नारायणे रिसी आसिले देविले चेव दीवायण महारिसी पारासरे दगं भोच्चा बीयाणि हरियाणि य । -सूत्रकृताङ्ग, १.३.४.१-३ 8. Some Ethical Aspects of Mahayana Buddhism as Depicted in the Sutrakritanga, Page 2 ( यह लेख All India Seminar on Early Buddhism and MahayanaDeptt. of Pali and Buddhist Studies, B. H. U. Nov. 10 13, 1984 में पढ़ा गया था।) ३. भगवतोऽहतो चन्द्रप्रभस्य प्रतिमेयं कारिता महाराजाधिराज श्री रामगुप्तेन उपदेशात् । ४. जैन साहित्य का बृहत् इतिहास, भाग-१, पृ० ५१-५२ तथा सेक्रेड बुक्स आफ दी ईस्ट, भाग-२२, प्रस्तावना, पृ० ३१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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