SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७८८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय मतिसागर भरतेश्वर-संवाद, दूत-बाहुबलिसंवाद आदि.--दूत-बाहुबलिसंवाद का एक उदाहरण निम्न है : दूत पभणइ, दूत पभणइ बाहुबलि राउ भरहेसर चक्क धरु कहि न कवणि दूहवण कीजह, वेगि सुवेगि बोलिह संभलि बाहुबलि । विण बंधव सवि संपइ उणी, जिम विण लवण रसोई अलूणी। तुम बंसणि उत्कंठित राउ, नितु नितु बाट जोह भाउ ॥ बाहुबली दूत को वीरतापूर्वक उत्तर देते हैं: राउ जंपइ, राउ जंपइ सुणिन सुणि दूत । जं विहि लिहीलं भाल भलि तंजि, लोह इह लोह पामह । अरि रि देव न दानव महिमंडलि मंडलैव मानव काइ न लंघइ लहिया लहि, लाभहि अधिक न अोझा दहि । इस रास में सेना-वर्णन, दिग्विजय-वर्णन, हाथी घोड़ों और सैनिकों के अनेक वर्णन अतिशयोक्तिपूर्ण हैं किन्तु भाषा में सर्वत्र प्रवाह और अनुप्रासों की छटा वर्तमान है. वीर-रसात्मक काव्यों में सेना-यात्रा के प्रसंग अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं. भरतेश्वर बाहुबलि रास में सेनायात्रा का वर्णन इस प्रकार है ठवणि प्रहि डग्गमि पूरब दिसिहि, पहिल चालिय चक्क । धूजिय धरयल थरहरए, चलिय कुलाचल-चक्क ॥१८॥ पूठि पियाणु तउ दियए, भुयबलि मरह नरिंदु तु । पिडि पंचायण परदल हैं, हलिचलि अवर सुरिंदु ॥१६॥ वज्जिय समहरि संचरिय, सेनापति सामंत, मिलिय महाधर मंडलिय, गाढ़िय गुण गज्जंत ॥२०॥ कवि साधारु ने संवत् १४११ वि० (१३५४ ई०) में 'प्रद्युम्नचरित्र' लिखा. इस काव्य में कृष्ण और रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्नकुमार का चरित्र ७०० पद्यों में वर्णित है. कवि छीहल का रचनाकाल सं० १५७४ [१५१७ ई०] है जिन्होंने 'पंचसहेली रा दूहा' लिखा. कवि ने अपना परिचय इस प्रकार दिया है: चउरासी अगलइ सइ, जु पन्द्रह संवच्छर । सुकल पक्ष अष्टमी, मास कातिक गुरु वासर ।। हृदय ऊपनी बुद्धि, नाम श्री गुरु को लीन्हउ । नाल्हिग बसिनाथू सुतनु, अगरवाल कुल प्रगट रवि ।। बावनी सुधा रचि बिस्तरो, कवि कंकण छीहल कवि ।।५३॥ १. आत्मप्रतिबोध जयमाल २. उदरगीत ३. पंथीगीत और ४. छीहल बावनी या बावनी छीहल कवि की प्रसिद्ध रचनायें हैं. विनयसमुद्र बाकानेर के उपकेशगच्छीय वाचक हरसमुद्र के शिष्य थे, जिनका समय सं० १५८३ से १६१४ तक है. इनकी रचनायें इस प्रकार हैं : १. हिन्दी काव्यधारा, राहुल सांकृत्यायन पृ० ४००. SHA CAL Jain Education International For Private & Personal use only www.yahelhorary.org
SR No.211841
Book TitleRajashtnani Sahitya me Jain Sahityakaro ka Sthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Manoriya
PublisherZ_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf
Publication Year1965
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy