Book Title: Rajashtnani Sahitya me Jain Sahityakaro ka Sthan Author(s): Purushottam Manoriya Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 1
________________ Jain Education श्रीपुरुषमलाल मेनारिया एम० ए०. साहित्यरत्न राजस्थानी साहित्य में जैन साहित्यकारों का स्थान मध्यकालीन भारतीय इतिहास में राजस्थान को परम गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है. राजस्थानी वीर-वीरांगनाओं ने अपने धर्म और मान-मर्यादा की रक्षा हेतु असीम त्याग और बलिदान किए हैं. गौरवपूर्ण मृत्यु प्राप्त करना राजस्थानी -विलासों को तुच्छ जीवन का सदियों तक प्रधान उद्देश्य बना रहा और राजस्थानी वीर-वीरांगनाओं ने सांसारिक सुखसमझते हुए मरण को महान् त्यौहार के रूप में अंगीकृत किया. मरणत्यौहार के विषय में कहा गया है यह टह धुरे त्रमागला है सिंघव ललकार । चित्त कुंभ चैलां चहे, श्राज मरण त्युंहार || अर्थात्-नक्कारे बज रहे हैं, सिधुराग वृक्त जलकार हो रही है और पिस हादियों से सामना करना चाहता है क्योंकि आज मरण-त्योहार है. अर्थात् - आज घर पर सास होने के लिए उमंगित हो रही आज घरे सासू कहे, हरख बहू बलेया से पूत चाणक काय । मरेया जाय ॥ कहती है कि उसको अचानक हर्ष क्यों हो रहा है ? इसलिए कि उसकी पुत्र वधू सती है और पुत्र युद्धभूमि में मरने जा रहा है ! सुत मरियो हित देस रे, हरख्यो बंधु समाज । मां नहं हरखी जनम दे, जतरी हरखी श्राज ॥ अर्थात् - पुत्र देश हित मारा गया तो बन्धुसमाज प्रसन्न हुआ. मां पुत्र को जन्म देकर जितनी प्रसन्न नहीं हुई थी उतनी उसके मरने पर हुई है. इस प्रकार राजस्थान भारत देश की वीर भूमि के रूप में विख्यात हो गया है, जिसके विषय में सुप्रसिद्ध इतिहासकार जेम्स टाड ने लिखा है- "राजस्थान में एक भी छोटी रियासत ऐसी नहीं है जिसमें थर्मोपोली जैसी युद्ध भूमि न हो और कदाचित् ही कोई ऐसा नगर हो जिसने लियोनिडास जैसा योद्धा नहीं उत्पन्न किया हो. ' राजस्थान को वीर भूमि बनाने का प्रधान श्रेय जहाँ राजस्थान के रणबांकुरे वीरों को है, वहां उसे वीरभूमि के रूप में जगत्विख्यात करने का श्रेय साहित्य एवं साहित्यकारों को है. राजस्थान के साहित्यकार लेखनी के साथ ही तलवार के भी धनी रहते हुए स्वयं युद्ध भूमि में वीरों के साथ मरने-मारने के लिए तत्पर रहे हैं. ऐसे वीर रसावतार कवियों की परम प्रभावशाली वाणी से प्रेरित होते हुए राजस्थान के अगणित वीरों और वीरांगनाओं ने अपने प्राण सहर्ष ही १. दी एनल्स एण्ड एन्टिक्विटीज आफ राजस्थान, कुक्स संस्करण, लंदन, भूमिका, भाग १, ११२० ई०. 1000+ chis 11000/ urally.orgPage Navigation
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