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________________ Cate पुरुषोत्तमलाल मेनारिया : राजस्थानी साहित्य में जैन साहित्यकारों का स्थान : ७८३ उद्भव राजस्थान में प्रचलित नागर अपभ्रंश से हुआ है." राजस्थानी भाषा के उद्भव काल के विषय में विभिन्न मत प्रकट किये गये हैं. महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने राजस्थानी और अन्य भारतीय आधुनिक भाषाओं का उद्भव काल वि० सं० ८१७ निर्धारित किया है. 2 राजस्थानी भाषा-साहित्य का आरम्भ काल वि० सं० १०४५ भी लिखा गया है. उ श्री नरोत्तमदास जी स्वामी ने राजस्थानी भाषा का उद्भव वि० सं० ११५० लिखा है. ४ राजस्थानी भाषा-साहित्य की प्राचीनतम रचना के रूप में 'पूषी' अथवा 'पुष्य कवि द्वारा वि० सं० ७०० में रचित अलंकार - ग्रन्थ का उल्लेख मात्र प्राप्त होता है. यह कृति अद्यावधि अप्राप्य है अतएव इसके विषय में निश्चितरूपेण मत नहीं व्यक्त किया जा सकता. इसी प्रकार चितौड़ नरेश माग द्वितीय [वि० [सं० ८००-९००] कृत 'शुमा राम्रो' का उल्लेख भी प्राप्त होता है किन्तु यह ग्रंथ भी प्राप्य नहीं है. ६ १८वीं सदी में दौलतविजय अपर नाम दलपतविजय रचित खूमाण रासो और उक्त खुमाण रासो को एक ही कृति मान लेने के कारण विद्वानों में एक विवाद अवश्य उठ खड़ा हुआ है. इस प्रकार राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में उक्त ग्रंथों को प्रमाण स्वरूप नहीं प्रस्तुत किया जा सकता. ७ उद्योतन सूरि द्वारा वि० सं० ८३५ में लिखे गये 'कुवलयमाला' कथाग्रन्थ से राजस्थानी भाषा के मरुदेशीय रूप का उल्लेख नाम सहित इस प्रकार प्राप्त होता है जय जडे बहु भो कति (वि), पीण सू (यू) संगे । तुपा भणिरे ग्रह पेच्छइ मारुए तन्तो || S अप्पा उक्त प्रमाण से प्रकट है कि राजस्थानी भाषा का उद्भव वि० सं० ८३५ में हो चुका था और उसके मरुदेशीय रूप की प्रतिष्ठा भी हो चुकी थी. इसलिए उद्योतन सूरि ने देश की तत्कालीन अठारह उल्लेखनीय प्रमुख भाषाओं में मरुदेशीय भाषा की गणना की. इस प्रकार राजस्थानी भाषा-साहित्य का उद्भवकाल नवमी शताब्दी विक्रमीय मान लेने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. नवीं शताब्दी से आधुनिक काल तक राजस्थानी भाषा-साहित्य का निर्माण निरन्तर होता रहा है जिससे इस साहित्य की सम्पन्नता स्वतः प्रकट होती है. राजस्थान में ब्राह्मण पण्डितों, राजपूतों, चारणों, मोतीसरों, ब्रह्म भट्टों, ढाढ़ियों, जैसा और साध्वियों, पतियों, निर्गुणी संतों आदि साहित्यानुरागियों द्वारा प्रचुर परिमाण में राजस्थानी भाषा-साहित्य का निर्माण, संरक्षण, संवर्द्धन, अनुवाद, टीका आदि कार्य सुचारु रूप में सम्पन्न हुआ. राजस्थानी भाषा-साहित्य १. राजस्थानी भाषा की उत्पत्ति और विकास के विषय में विशेष विवरण लेखक की एक पुस्तक "राजस्थानी भाषा की रूपरेखा" प्रकाशकहिन्दी प्रचारक पुस्तकालय, बनारस में पृ० ७।२३ पर दृष्टव्य है. २. हिन्दी काव्यधारा, किताब महल, प्रयाग, प्रस्तावना पृ० १२. ३. राजस्थानी भाषा और साहित्य, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग पृ० १०३. ४. राजस्थानी भाषा और साहित्य, नवयुग ग्रन्थ कुटीर बीकानेर, पृ० २२. ५. (क) डा० रामकुमार वर्मा, 'हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास', रामनारायणलाल इलाहाबाद, १६५८ पृ० ४६. (ख) प्रो० उदयसिंह भटनागर, हिन्दी साहित्य भाग २, भारतीय हिन्दी परिषद् प्रयाग, १६५६ पृ० ६२०. ६. शिवसिंह सरोज, सातवां संस्करण, १६२६ पृ० ६. ७. (क) रामचन्द्र शुक्ल, 'हिन्दी साहित्य का इतिहास', सातवां संस्करण, सं० २००८ पृ० ३३. (ख) डा० रामकुमार वर्मा, हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास, रामनारायण लाल, इलाहाबाद, १६३८ पृ० १४४. (क) कुवलयमाला कथा, सिंवी जैन ग्रन्थमाला, पद्मश्री मुनि जिनविजयजी, भारतीय विद्या भवन, बम्बई. (ख) अपभ्रंश कान्यत्रयो, सं० लालचन्द्र भगवानदास गांधी, गायकवाड़ - ओरियन्टल सीरीज, ओरियन्टल इन्स्टीट्यूट बड़ोदा पृ० १२-६३. ८. Jain EduSERENENENZINZINANZINAISESEINCINEINZINEINZINEISPINAISE.
SR No.211841
Book TitleRajashtnani Sahitya me Jain Sahityakaro ka Sthan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Manoriya
PublisherZ_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf
Publication Year1965
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size2 MB
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