________________ आचार्यप्रवी श्राआनन्दग्रन्थ श्राआनन्दाग्रन्थः प्राकृत भाषा और साहित्य womanmomvivarwavimirmwoman.avir www.in 12 RATE 128 बारां<बारह <द्वादस सगला<सगलो<सकल साइं<सामि<स्वामि हलुआ<लहुआ<लघुक इस प्रकार राजस्थानी भाषा के ध्वनि-तत्वों एवं व्याकरण तत्वों दोनों पर मध्यकालीन भारतीय आर्य-भाषाओं का पर्याप्त प्रभाव है / प्रादेशिक भाषाओं में प्राकृत के तत्वों के अध्ययन का प्रयत्न पूना प्राकृत सेमिनार में किया गया / 16 किन्तु उसके सभी निबन्ध प्रकाशित नहीं हो सके हैं। प्रो० टी० एन० दबे ने 'राजस्थानी एवं गुजराती पर प्राकृत का प्रभाव' एवं डा० नेमिचन्द्र शास्त्री ने 'भोजपुरी में प्राकृत के तत्व' विषयों का अच्छा विवेचन किया है / इस अध्ययन को पर्याप्त अनुसन्धान की आवश्यकता है। सन्दर्भ 1. दृष्टव्य-पाइअसद्दमहण्णव, पृ० 45 2. ग्रियर्सन-लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इण्डिया, खण्ड 1, भाग 1 3. डा० चटर्जी-'राजस्थानी भाषा' पृ० 65 4. मुन्शी- 'गुजराती एण्ड इटस् लिटरेचर' %. It is spoken in Rajputana and Western Portion of Central India and also in the neighbouring tracts of central Proviences, Sind and the Panjab. -Grierson-L.S. I. Vol. I Part I. p. 171. 6. 'अप्पा-तुप्पाँ' भणिरे अह पेच्छइ मारुए तत्तो'-कुव० 153.3 एवं दृष्टव्य-लेखक का प्रबन्ध ---- 'कुबलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन', छठा अध्याय / 7. डा० शिवस्वरूप शर्मा—'राजस्थानी गद्य साहित्य', पृ० 2 पर उद्धृत सन्दर्भ / 8. दृष्टव्य , वही, पृ० 4, सन्दर्भ c. Dr. R. C. Dwivedi 'Influence of Sanskrit on the Rajasthani language and literature'.--Charu Dev Shastri Felicitation Volume p. 217-32. 10. 'चतुर्थ्याः षष्ठी' / हेम० 8/3/131 11. डा० तंगारे—'हिस्टारिकल ग्रामर आफ अपभ्रंश', पृ० 104 12. डा. वीरेन्द्र श्रीवास्तव-अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, पृ० 124 13. 'स्यम्-जस-शसां लुक' / / 344 // 14. 'अ-डड-डुल्लाः स्वार्थिक-क-लूक च' // 426 / / 15. रावत सारस्वत- 'डिंगलगीत' शब्दार्थ, दृष्टव्य 16. डा० के० के० शर्मा---'मेवाड़ी के क्रियापदवन्द', नागरी प्रचारिणी पत्रिका, मई जन 73 / 17. डा० दशरथ शर्मा-भूमिका पृ०७२, 'हम्मीरायण' / 18. Proceedings of the Seminar in Prakrit Studies. Poona, 1969. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org