Book Title: Rajasthani Bhasha me Prakrit Apbhramsa ke Prayog Author(s): Prem Suman Jain Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf View full book textPage 1
________________ डा० प्रेमसुमन जैन, एम० ए०, पी-एच० डी० (संस्कृत विभाग, उदयपुर विश्वविद्यालय) राजस्थानी भाषा में प्राकृत-अपभ्रंश के प्रयोग आधुनिक भारतीय भाषाओं के विकास में संस्कृत के अतिरिक्त प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषाओं का पर्याप्त प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। राजस्थानी एवं गुजराती भाषाएँ साहित्य की दृष्टि से पर्याप्त विकसित हो चुकी हैं। ध्वनिविज्ञान एवं रूपविज्ञान की अपेक्षा से इनका स्वतन्त्र अस्तित्व है। किन्तु इन भाषाओं के विकास-क्रम एवं प्राचीन स्वरूप को जानने के लिए इन पर प्राकृत एवं अपभ्रंश के प्रभाव का अध्ययन करना आवश्यक है। इससे प्राचीन एवं अर्वाचीन भाषाओं का सम्बन्ध भी स्पष्ट हो सकेगा। उत्पत्ति एवं सम्बन्ध विद्वानों का यह सामान्य मत है कि विभिन्न आधुनिक भारतीय भाषाएँ अलग-अलग अपभ्रंशों से उत्पन्न हुई हैं।' जिसे आज 'राजस्थानी' कहा जाता है वह भाषा नागरअपभ्रंश से उत्पन्न मानी जाती है, जो मध्यकाल में पश्चिमोत्तर भारत की कथ्य भाषा थी। राजस्थानी भाषा के क्षेत्र और विविधता , को ध्यान में रखकर डा० सुनीतिकुमार चटा -इसकी जनक भाषा को सौराष्ट्र-अपभ्रंश तथा श्री के० एम० मुन्शी गुर्जरी-अपभ्रंश कहते हैं। राजस्थानी भाषा बहुत समय तक गुजराती भाषा से अभिन्न रही है इसलिए उसकी उत्पत्ति को विभिन्न अपभ्रंशों से जोड़ा जाता है। वस्तुतः छठी शताब्दी से ११वीं शताब्दी तक पश्चिमोत्तर भारत में जो सामान्य विचार-विनिमय की कथ्य-भाषा थी, उसी से राजस्थानी विकसित हुई है। विद्वान् उसे 'पुरानी हिन्दी' नाम से भी अभिहित करते हैं। राजस्थानी भाषा राजस्थान और मालवा के अतिरिक्त, मध्यप्रदेश, पंजाब तथा सिन्ध के कुछ भागों में बोली जाती है। अतः कई उपभाषाओं का सामान्य नाम राजस्थानी है, जो आधुनिक विद्वानों ने स्थिर किया है। इसका प्राचीन नाम 'मरुभाषा' था जिसका सर्वप्रथम उल्लेख उद्योतनसूरि ने 'कुवलयमालाकहा' में किया है । उत्तरकालीन ग्रन्थों में इस भाषा के लिए 'मरुभाषा' मरुभूमिभाषा, मारुभाषा, मरुदेशीयाभाषा, मरुवाणी, डिंगल आदि नाम प्रयुक्त हए हैं। इनसे स्पष्ट है कि राजस्थानी मुख्यत: मारवाड़-भूभाग की भाषा है । यद्यपि उसका प्रभाव पड़ौसी प्रान्तों की भाषा पर भी है। mandarmanaMERARMANAS Mo v ememewmarana mmammomaonewhiamananews Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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