SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजाराम जैन : रइधू-साहित्य की प्रशस्तियों में ऐतिहासिक व सांस्कृतिक सामग्री : ६६१ दाम्पत्य-जीवन की सार्थकता तभी मानी जाती थी, जब कि सुयोग्य संतति की प्राप्ति हो. उसके अभाव में उत्तराधिकार की एक विकट समस्या उठ खड़ी होती थी. उसके अभाव में कौन तो चल अचल सम्पत्ति का संरक्षण करेगा, गृहस्थ-धर्म-नीति का प्रवर्तन कौन करेगा ? आश्रितों के आँसू पोंछकर उनका लालन-पोषण कौन करेगा ?" विशेषतया माँ का आधार तो पति की मृत्यु के बाद पुत्र ही है उसीको अपनी आशाओं का केन्द्र मानकर वह घर में वास करती है. आर्थिक स्थिति की दृष्टि से कवि ने प्रशंगवश बहुत सी बातों की चर्चा की है. वस्तुतः अर्थ-व्यवस्था किसी भी समाज या राष्ट्र की रीढ़ होती है. उसकी पृष्ठभूमि में विभिन्न परम्पराएँ निर्मित होती हैं. जन-जीवन का विकास तथा रीतिरिवाज भी उसी के आलोक में प्रकाशित होते हैं. मालवा का रइधू कालीन समय कई दृष्टियों से समृद्ध था. समाज, संस्कृति एवं साहित्य का जो अभूतपूर्व विकास वहाँ हुआ, उसका प्रमुख कारण वहाँ की शान्तिपूर्ण एवं स्थिर राजनीति एवं अर्थव्यवस्था ही थी. कवि के सम्मुख आर्थिक सम्पन्नता का चित्रण करने के लिये इतनी सामग्री थी कि उसे वह अपने साहित्यरूपी विशाल क्षेत्र में दोनों हाथों से उछाल-उछालकर बिखेरता चला है. सामान्य जन को उसका चुन सकना कठिन है. कवि के अनुसार मालव जनपद सभी प्रकार के धन-धान्य से परिपूर्ण था. ऐसी कोई भी वस्तु न थी जिसका कि वहाँ अभाव हो वहाँ का व्यापारी वर्ग न्यायपूर्वक सम्पत्ति का अर्जन करता था फिर भी उसका उपयोग भोगैश्वर्य में नहीं करता था. लोग सदैव ही इस प्रकार सोचा करते थे कि 'ऐसी सम्पत्ति के अर्जन एवं संचय से क्या लाभ जिससे दीन-दुखी एवं आवश्यकता वाले लोगों की आवश्यकताएँ ही पूर्ण न हों. ५ 'पासणाहचरिउ" की रचना - समाप्ति के बाद कवि ने जब उसे अपने आश्रयदाता खेमसिंह साहू को समर्पित किया तो उन्होंने कवि को द्वीपद्वीपान्तरों से लाये गये विविध वस्त्राभूषणादि भेंट स्वरूप प्रदान किये थे. इससे प्रतीत होता है कि साहू खेमसिंह तथा अन्य लोगों का व्यापार विदेशों में भी चलता था तथा उच्चकोटि के कपड़े तथा सोना-चाँदी हीरा मोतियों आदि सामप्रियों का प्रर्याप्त मात्रा में आयात-1 त-निर्यात किया जाता था. * नगर - वर्णन की दृष्टि से महाकवि रइधू ने अपनी प्रशस्तियों में ग्वालियर का बड़ा सुन्दर वर्णन किया है. उसके समय में वहाँ का वैभव अपने यौवन पर था. वहाँ के कलापूर्ण भवन एवं जिन मन्दिर जन- कोलाहल से परिपूर्ण सुन्दर सड़कें, सोने-चांदी एवं हीरे मोतियों से भरे हुए बाजार, स्थान-स्थान पर निर्मित दान शालाएँ, चटशालाएँ आदि किसी के भी मन को मोह सकती थीं. समृद्ध व्यापारी वर्ग धर्म एवं साहित्य की सेवा में सदैव आग्रगामी रहता था. ग्वालियर में विद्वानों, कवियों का निवास स्थान था. समाज में उन्हें खूब प्रतिष्ठा एवं सम्मान प्राप्त होता था. नगरवधुएँ जब प्रभाती गीत एवं पूजन-भजन के सुन्दर पद्य मधुर स्वर लहरी से गाती हुई निकलतीं तो नगर में शान्ति का साम्राज्य छा जाता था. इसे देखकर कवि स्वयं ही आत्मविभोर हो उठता था. सर्व गुण सम्पन्न होने के कारण कवि को ग्वालियर के लिये 'पण्डित' की उपाधि देनी पड़ी. वह कहता है कि – 'पृथ्वी मण्डल में प्रधान, देवेन्द्रों के मन में भी आश्चर्य उत्पन्न कर देने वाला, विशाल तोरणों एवं शिखरों से युक्त यह गोपाचल नगर ऐसा लगता है मानों पण्डित श्रेष्ठ गोपाचल हो." आगे चलकर कवि ने ग्वालियर नगर का बड़ा ही सुन्दर एवं विशद वर्णन किया है." ग्वालियर को Jain Education International १. देखिये- सुकौशल चरित ३-१८-११. २. देखिये- असुकौसल० ४/७/६. ३. देखिये - मेहेसर० १/४/८. ४. देखिये- मेहेसर० ११४/६. ५. देखिये- पउमचरिउ. १|३|१०. ६. देखिये ---पासणाह० ७।१०।५-६. ७. देखिये- पास ह० १/२/१५-१६. ८. देखिये-पासणाह० १।३।१-१४. For Private Face Onl www.jainelibrary.org
SR No.211806
Book TitleRaidhu Sahitya ki Prashastiyo me Aetihasik va Sanskruti Samagri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherZ_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf
Publication Year1965
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy