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________________ मेवाड़ के जैन वीर 143 (10) मेहता बन्धु-मेहता अगरचन्द के पौत्र मेहता देवीचन्द को महाराणा भीमसिंह ने प्रधान बनाया। मेहता रामसिंह को अंग्रेज सरकार की सलाह पर महाराणा भीमसिंह ने प्रधान नियुक्त किया। मेहता शेरसिंह को पहले महाराणा भीमसिंह ने एवं बाद में महाराणा स्वरूपसिंह ने प्रधान नियुक्त किया। शेरसिंह के बाद महाराणा स्वरूपसिंह ने मेहता गोकुलचन्द को प्रधान नियुक्त किया। महाराणा स्वरूपसिंह द्वारा कोठारी केसरीसिंह को प्रधान नियुक्त करने के बाद महाराणा शम्भूसिंह के समय मेहता पन्नालाल प्रधान नियुक्त किया गया और कोठारी बलवन्तसिंह द्वारा त्यागपत्र देने के बाद महाराणा फतहसिंह ने मेहता भोपालसिंह को प्रधान नियुक्त किया तथा अन्तिम महाराणा भूपालसिंह के समय मेहता फतहलाल मेवाड़ राज्य का प्रधान रहा / किलेदार एवं फौज बक्षो मेहता जालसी द्वारा मेवाड़ राज्य पर महाराणा वंश की प्रतिष्ठा करने के बाद इसी वंश का मेहता चीलसी महाराणा सांगा, बनवीर व महाराणा उदयसिंह के समय मेवाड़ की इतिहासप्रसिद्ध राजधानी चित्तौड़गढ़ का किलेदार एवं फौजबक्षी रहा तथा मेहता मालदास महाराणा भीमसिंह के समय तथा बाद में मेहता श्रीनाथजी मेवाड़ के प्रमुख सामरिक किलों के किलेदार व फौजबक्षी रहे। इसके अतिरिक्त बोलिया रुद्रभान व सरदारसिंह भी किलेदार व फौजबक्षी रहे। ___ इस प्रकार हम देखते हैं कि राक्ल राजवंश के अन्तिम शासक रत्नसिंह के समय से राणावंश के प्रथम शासक हमीर से लेकर अन्तिम शासक महाराणा भूपाल तक मेवाड़ के वीर शासकों ने विश्व के इतिहास में अपना जो गौरवशाली स्थान बनाया, उसमें जैन वीरों, आमात्यों व प्रशासकों का भी समांतर योगदान रहा / इन जैन वीरों ने अपने ऐतिहासिक कृतित्व-व्यक्तित्व से न केवल राजमुखापेक्षी ऐतिहासिक परम्परा में जननायकों की भूमिका का ही सूत्रपात किया है अपितु इस सत्य तथ्य की भी प्रतिष्ठा की है कि बिना जननायकों के योगदान के किसी क्षेत्र का इतिहास और उसके ऐतिहासिक शासक मात्र अपने बलबूते पर ही गौरव-महिमा का अर्जन नहीं कर सकते अपितु इसके पीछे अनेक जन-प्रतिनिधियों का त्याग और बलिदान भी संलग्न रहता है। इन जननायक जैन वीरों ने अपने साहस, बलिदान, त्याग और प्रशासन से न केवल राजनैतिक स्तर पर ही अपने सेवा पदों का प्रतिनिधित्व किया अपितु ये सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक क्षेत्रों के भी अग्रगण्य नेता थे और इन्होंने अपने कार्यकाल में मेवाड़ की गर्वीली सामाजिकता, स्वतन्त्रता संवर्षोन्मुख आथिक दशा और सहिष्णुता प्रधान धार्मिक स्थितियों का निर्माण किया जिससे मेवाड़ विभिन्न धर्मों व संस्कृतियों के धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का केन्द्र-स्थल बनकर भारतीय इतिहास में विशेषरूप से गौरवान्वित हुआ। 0000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211750
Book TitleMevad ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShambhusinh
PublisherZ_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
Publication Year1982
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ceremon
File Size2 MB
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