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________________ ४२ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : षष्ठ खण्ड ....................................................................... __ मेहता मालदास ने अपने नेतृत्व में मेवाड़ की सेना को लेकर मराठों का आतंक और दबाव समाप्त करने के लिए उदयपुर से प्रस्थान किया। इस सेना ने अपने वीर सेनापति मालदास के रण-कौशल से मराठों के सभी मुख्य ठिकानों-निम्बाहेड़ा, निकुम्भ और जीरण को जीत लिया। उसके पश्चात् ये सेना तत्कालीन मेवाड़ और मालवा के सीमा सन्धि-स्थल पर स्थित मराठों के मुख्य केन्द्र जावद को जीतने के लिये आगे बढ़ी। जावद में मराठों के प्रतिनिधि नाना सदाशिवराव ने मेहता मालदास की सेना का प्रतिरोध करने का असफल प्रयास किया और शीघ्र हो अपनी पराजय अनुभव कर कुछ शर्तों के साथ वह जावद को छोड़कर चला गया। होल्कर राजमाता श्रीमती अहिल्याबाई को जब मेवाड़ के दीवान सोमचन्द गाँधी और वीर सेनापति मेहता मालदास की मेवाड़ से मराठों का आतंक और दबाव समाप्त कर देने की संयुक्त मंशा का पता लगा और मालदास द्वारा मेवाड़ से उठाये जा रहे मराठों के मुख्य थानों की जानकारी मिली तब उसने तुरन्त तुलाजी सिन्धिया और श्रीभाई के नेतृत्व में अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित चुने हुए योद्धाओं की मराठा सेना जावद की ओर रवाना कर दी। संयोग के जावद छोड़कर जा रहा नाना सदाशिव भी अपने सैनिकों सहित इस सेना से मिल गया। मेहता मालदास ने बड़े साहस से इस मराठा सेना का सामना करने का निश्चय किया। मालदास के साथ सादड़ी का सुल्तानसिंह, देलवाड़े का कल्याणसिह, कानोड़ का जालिमसिंह और सनवाड़ का बाबा दौलतसिंह आदि मेवाड़ के क्षत्रिय सामन्त योद्धाओं ने वि० सं० १८४४ में हडक्याखाल गाँव के पास हुए इस भीषण युद्ध में भाग लिया जिसमें मेवाड़ के इस बीर सेनापति मेहता मालदास ने वीरतापूर्वक युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की। इन प्रमुख जैन वीरों के अतिरिक्त युवा इतिहासकार डॉ० देव कोठारी ने इतिहास के ज्ञात स्रोतों एवं अपनी मौलिक शोध से मेवाड़ के स्वतन्त्रता संघर्ष, कठिन प्रशासन और आत्म बलिदान में अपना सर्वस्व समर्पित करने वाले कतिपय प्रमुख जैन वीरों एवं प्रशासकों का सूचीबद्ध उल्लेख किया है, जिन्होंने अमात्य के पद पर प्रशासक रूप में, समरांगण में योद्धा के रूप में और किलेदार व फौजबक्षी के पद पर मेवाड़ की स्वतन्त्रता के प्रहरी के रूप में अपनी ऐतिहासिक सेवाएँ दी हैं। उनका संक्षिप्त उल्लेख इस प्रकार है प्रधान एवं दीवान (१) नवलखा रामदेव-महाराणा क्षेत्रसिंह (वि० सं० १४२१ से १४३६) एवं महाराणा लक्षसिंह (वि० सं० १४३६ से १४५४) के शासनकाल में मेवाड़ राज्य का प्रधान रहा। (२) नवलखा सहणपाल-महाराणा मोकल (वि० सं० १४५४ से १४६०) तथा महाराणा कुम्भा (वि० सं० १४६० से १५२५) के शासनकाल में मेवाड़ राज्य प्रधान रहा । (३) तोलाशाह-महाराणा सांगा (वि० सं० १५६६ से १५८४) के समय मेवाड़ राज्य का प्रधान रहा । (४) बोलिया निहालचंद-महाराणा उदयसिंह (वि० सं० १६१० से १६२८) के समय मेवाड़ राज्य का प्रधान रहा। (५) कावड़िया अक्षयराज-महाराणा कर्णसिंह के समय मेवाड़ राज्य का प्रधान रहा। (६) शाह देवकरण-महाराणा जगतसिंह द्वितीय (वि० सं० १७६० से १८०८) के समय मेवाड़ राज्य का प्रधान रहा। (७) मोतीराम बोलिया-कुछ समय तक महाराणा अरिसिंह (वि० सं० १८१७-२६) का प्रधान रहा। (८) एकलिंगदास बोलिया-महाराणा अरिसिंह के समय अल्पायु में ही प्रधान रहा । (8) सतीदास एवं शिवदास गांधी- सोमचन्द गांधी को मृत्यु के बाद दोनों महाराणा भीमसिंह के समय राज्य के प्रधान रहे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211750
Book TitleMevad ke Jain Veer
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShambhusinh
PublisherZ_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
Publication Year1982
Total Pages10
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ceremon
File Size2 MB
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