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________________ मूल्य दर्शन और पुरुषार्थ चतुष्टय १९१ धार्मिक मूल्य के रूप मे स्वत: साध्य है, लेकिन वह भी मोक्ष का मूल्य जैविक मूल्य हैं। आर्थिक मूल्य मौलिक-रूप से साधन-मूल्य हैं, साधन माना गया है जो सर्वोच्च मूल्य है। इस प्रकार अरबन के उपर्युक्त साध्य नहीं। आर्थिक शुभ स्वत: मूल्यवान् नहीं है, उनका मूल्य केवल मूल्य-निर्धारण के नियमों के आधार पर भी अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष शारीरिक, सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्यों को अर्जित करने के पुरुषार्थों का यही क्रम सिद्ध होता है जो कि जैन और दूसरे भारतीय साधन होने में है। सम्पत्ति स्वत: वाञ्छनीय नहीं है, बल्कि अन्य शुभों आचार दर्शनों में स्वीकृत हैं, जिसमें अर्थ सबसे निम्न मूल्य है और का साधन होने के कारण वाञ्छनीय है। सम्पत्ति एक साधन-मूल्य है, मोक्ष सर्वोच्च मूल्य है। साध्य-मूल्य नहीं। शारीरिक मूल्य भी वैयक्तिक मूल्यों के साधक हैं। स्वास्थ्य और शक्ति से युक्त परिपुष्ट शरीर को व्यक्ति अच्छे जीवन के मोक्ष सर्वोच्च मूल्य क्यों? अन्य मूल्यों के अनुसरण में प्रयुक्त कर सकता है। क्रीड़ा स्वयं मूल्य है, इस सम्बन्ध में ये तर्क दिये जा सकते हैं किन्तु वह भी मुख्यतया साधक-मूल्य है। उसका साध्य है शारीरिक १. मनोवैज्ञानिक दृष्टि से जीवमात्र की प्रवृत्ति दुःख-निवृत्ति स्वास्थ्य। मनोरंजन चित्तविक्षोभ को समाप्त करने का साधन है। क्रीड़ा की ओर है। क्योंकि मोक्ष दुःख की आत्यन्तिक निवृत्ति है, अत: वह और मनोरंजन उच्चतर मूल्यों के अनुसरण के लिए हमें शारीरिक एवं सर्वोच्च मूल्य है। इसी प्रकार आनन्द की उपलब्धि भी प्राणीमात्र का मानसिक दृष्टि से स्वस्थ रखते हैं। लक्ष्य है, चूंकि मोक्ष परम आनन्द की अवस्था है, अत: वह सर्वोच्च २. सामाजिक मूल्य-सामाजिक मूल्यों के अन्तर्गत साहचर्य मूल्य है। तथा चरित्र के मूल्य आते हैं। आज के मानवतावादी युग में तो इन २. मूल्यों की व्यवस्था में साध्य-साधक की दृष्टि से एक क्रम मूल्यों का महत्त्व अत्यन्त व्यापक हो गया है। यद्यपि ये दोनों मूल्य होना चाहिए और उस क्रम में कोई सर्वोच्च एवं निरपेक्ष मूल्य होना किसी अन्य साध्य के साधन-स्वरूप प्रयुक्त होते हैं, परन्तु कुछ महान् चाहिए। मोक्ष पूर्ण एवं निरपेक्ष स्थिति है। अत: वह सर्वोच्च मूल्य है। पुरुषों ने सच्चरित्रता एवं समाजसेवा को जीवन के परम लक्ष्य के रूप मूल्य वह है जो किसी इच्छा की पूर्ति करे। अत: जिसके प्राप्त हो जाने में ग्रहण किया है। मनुष्य समाज का अंग है। एक असीम आत्मा का पर कोई इच्छा ही नहीं रहती है, वही परम मूल्य है। मोक्ष में कोई इच्छा साक्षात्कार समाज के साथ अपनी वैयक्तिकता का एकाकार करके ही नहीं रहती है, अत: वह परम मूल्य है। किया जा सकता है। ३. सभी साधन किसी साध्य के लिए होते हैं और साध्य की ३. आध्यात्मिक मूल्य-मूल्यों के इस वर्ग के अन्तर्गत बौद्धिक, अनुपलब्धि अपूर्णता की सूचक है। मोक्ष की प्राप्ति के पश्चात् कोई सौन्दर्यात्मक एवं धार्मिक-तीन प्रकार के मूल्य आते हैं। ये तीनों मूल्य साध्य नहीं रहता, इसलिए वह परम मूल्य है। यदि हम किसी अन्य मूलत: साध्य मूल्य हैं। ये आत्मा की सर्वश्रेष्ठ या परम आदर्श प्रकृति मूल्य को स्वीकार करेंगे तो वह साधन-मूल्य ही होगा और साधन-मूल्य अर्थात् सत्यं, शिवं और सुन्दरं की अभिरुचियों को तृप्ति प्रदान करते को परम मूल्य मानने पर नैतिकता में सार्वलौकिकता एवं वस्तुनिष्ठता हैं तथा जैविक एवं सामाजिक मूल्यों से श्रेष्ठ कोटि के हैं। समाप्त हो जायेगी। तुलनात्मक दृष्टि से भारतीय दर्शनों के पुरुषार्थ चतुष्टय में ४. मोक्ष अक्षर एवं अमृतपद है, अत: स्थायी मूल्यों में वह अर्थ और काम जैविक मूल्य हैं तथा धर्म और मोक्ष अतिजैविक मूल्य सर्वोच्च मूल्य है। हैं। अरबन ने जैविक मूल्यों में आर्थिक, शारीरिक और मनोरंजनात्मक ५. मोक्ष आन्तरिक प्रकृति या स्वस्वभाव है। वही एकमात्र मूल्य माने हैं। इनमें आर्थिक मूल्य अर्थ-पुरुषार्थ तथा शारीरिक और परम मूल्य हो सकता है, क्योंकि उसमें हमारी प्रकृति के सभी पक्ष मनोरंजनात्मक मूल्य कामपुरुषार्थ के समान हैं। अरबन के द्वारा अतिजैविक अपनी पूर्ण अभिव्यक्ति एवं पूर्ण समन्वय की अवस्था में होते हैं। मूल्यों में सामाजिक और आध्यात्मिक मूल्य माने गये हैं। उनमें सामाजिक मूल्य धर्मपुरुषार्थ से और आध्यात्मिक मूल्य मोक्षपुरुषार्थ से सम्बन्धित भारतीय और पाश्चात्य मूल्य सिद्धान्तों की तुलना हैं। जिस प्रकार अरबन ने मूल्यों में सबसे नीचे आर्थिक मूल्य माने हैं, . अरबन और एबरेट ने जीवन के विभिन्न मूल्यों की उच्चता उसी प्रकार भारतीय दर्शन में भी अर्थपुरुषार्थ को तारतम्य की दृष्टि से एवं निम्नता का जो क्रम निर्धारित किया है, वह भी भारतीय चिन्तन से सबसे नीचे माना है। जिस प्रकार अरबन के दर्शन में शारीरिक और । काफी साम्य रखता है। अरबन ने मूल्यों का वर्गीकरण इस प्रकार किया मनोरंजन सम्बन्धी मूल्यों का स्थान आर्थिक मूल्यों से ऊपर, लेकिन सामाजिक मूल्यों से नीचे है उसी प्रकार भारतीय दर्शनों में भी कामपुरुषार्थ अरबन ने सबसे पहले मूल्यों को दो भागों में बाँटा है-(१) अर्थपुरुषार्थ से ऊपर लेकिन धर्मपुरुषार्थ से नीचे है। जिस प्रकार अरबन जैविक और (२) अति जैविक। अति जैविक मूल्य भी सामाजिक और ने आध्यात्मिक मूल्यों को सर्वोच्च माना है, उसी प्रकार भारतीय दर्शन आध्यात्मिक ऐसे दो प्रकार के हैं। इस प्रकार मूल्यों के तीन वर्ग बन में भी मोक्ष को सर्वोच्च पुरुषार्थ माना गया है। अरबन के दृष्टिकोण की जाते हैं भारतीय चिन्तन से कितनी अधिक निकटता है, इसे निम्न तालिका से १. जैविक मूल्य-शारीरिक, आर्थिक और मनोरंजन के समझा जा सकता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211738
Book TitleMulya Darshan aur Purusharth Chatushtaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherZ_Shwetambar_Sthanakvasi_Jain_Sabha_Hirak_Jayanti_Granth_012052.pdf
Publication Year1998
Total Pages15
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size2 MB
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