________________ मालवा में जैनधर्म : ऐतिहासिक विकास 257 (4) योगसार-यह ग्रंथ वि० सं० 1552 मंगसिर माह के शुक्ल-पक्ष में रचा गया। इसमें गृहस्थोपयोगी सैद्धांतिक बातों पर प्रकाश डाला गया है। साथ में कुछ मुनिचर्या आदि का भी उल्लेख किया गया है / ५-संग्रामसिंह सोनी—यह मालवा के सुलतान महमूद खिलजी के समय में खजांची के पद पर कार्यरत था। संग्रामसिंह सोनी श्वेताम्बर मतानुयायी जैन (ओसवाल) था। महमूद खिलजी के द्वारा राणा कुम्भा और दक्षिण के निजाम के साथ लड़े गये युद्धों में संग्रामसिंह सोनी ने मदद की और कीर्ति अजित की। संग्रामसिंह सोनी केवल राजनीतिक व्यक्ति ही नहीं था, वरन् वह एक विद्वान भी था। इसने बुद्धिसागर नामक ग्रंथ की रचना भी की थी। इसने एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ व्यय करके अलग-अलग स्थानों पर ज्ञान भण्डारों की स्थापना की थी। इसको बादशाह ने "नक्द-उल-मुल्क" की उपाधि दी थी। यह वही संग्रामसिंह सोनी है जिसने मक्सी पार्श्वनाथ तीर्थ के मन्दिर का निर्माण करवाया था। ___ इस समय के अन्य उल्लेखनीय जैन राज्याधिकारियों में मंडन के वंश का मेघ गयासुद्दीन खिलजी का मंत्री था। जिसे “फक्र-उल-मुल्क" की उपाधि प्राप्त थी। इसका भतीजा पुंजराज भी उच्च पद पर था। यह हिन्दुआ राय वजीर कहलाता था और बड़ा विद्वान था। सन 1500 में उसने "सारस्वत प्रक्रिया" नामक व्याकरण की रचना की थी और उसकी प्रेरणा पर ईश्वर सूरि ने "ललितांग चरित' की रचना की थी। जीवणशाह, गोपाल आदि का नाम भी उल्लेखनीय है। मांडवगढ़ में एक लाख जैन घरों की आबादी थी जिसमें सात लाख जैनी निवास करते थे / ऐसी किंवन्दती है कि यहाँ जब भी कोई नया जैनधर्मावलम्बी रहने आता तो उसको प्रत्येक घर से एक स्वर्णमुद्रा एवं एक ईंट दी जाती थी जिससे रहने के लिये मकान बन जाता था और आने वाला लखपति बन जाता था। इसी से मांडव की सम्पन्नता का अनुमान लगाया जा सकता है / - - विशेष-मालवा में जैनधर्म के वैभव की झांकी यहां केवल सार रूप में ही प्रस्तुत की गई है। जैन कला को तो लगभग इस लेख में छोड़ ही दिया है। मालवा की जैन कला और जैन साहित्य तथा मालवा के जैनाचार्य पर तो स्वतंत्र रूप से शोध करने की आवश्यकता है। जैनाचार्यों पर यदि स्वतंत्र रूप से कार्य किया जाता है तो जैन साहित्य और अनेक जैनाचार्यों के लुप्त इतिहास का प्रकटीकरण सम्भव है। -संपादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org