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________________ महावीराचार्य कृत 'गणितसार-संग्रह' -डॉ० अलेक्जेंडर वोलोदाकी मध्यकालीन भारतीय गणित के विकास में महावीराचार्य कृत 'गणितसारसंग्रह' का विशिष्ट स्थान है जिसकी ओर विज्ञान के इतिहास विषयक ग्रंथों में पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। (उदाहरण के लिये दे० सन्दर्भ साहित्य सं० [1])। इस लेख में महावीराचार्य की विषय-वस्तु का विश्लेषण तथा मूल्यांकन प्रस्तुत किया गया है। महावीराचार्य के जीवन की बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। स्वयम् उन्होंने अपने जन्मकाल, जन्म-स्थान और माता-पिता तथा गुरुओं के विषय में कुछ नहीं लिखा है । 'गणितसारसंग्रह' के पहले अध्याय में लेखक ने किसी भारतीय शासक को संबोधन किया है जिसने सन् 814-815 से लेकर सन् 877-878 तक शासन किया था। चूंकि महावीर ने भविष्य में भी उक्त शासक की सफलता की कामना प्रकट की है इसलिये ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि इस ग्रंथ की रचना नवीं शताब्दी के मध्य में हुई होगी (दे० सन्दर्भ साहित्य सं० [1], [2], [3], [6], [7], [8], [9] )। यह कहना कठिन है कि महावीर भारत के किस भाग में रहते थे। अधिसंख्य विद्वान उन्हें दक्षिण भारत का निवासी मानते हैं। इसका कारण यह है कि 'गणितसारसंग्रह' की संस्कृत के अतिरिक्त तीन अन्य पाण्डुलिपियों में प्रश्नों की व्याख्या तथा उनके उत्तर कन्नड़ में दिए गए हैं जिसका दक्षिण भारत में मध्य युग में बहुत प्रचार था। इस धारणा के पक्ष में एक तर्क यह भी है कि महावीर जैन धर्म के अनुयायी थे जो मुख्यतः दक्षिण भारत में अधिक प्रचलित है। 'गणितसारसंग्रह' में अंकगणित तथा रेखागणित पूरी तरह से दिए गए हैं, साथ ही बीजगणित तथा संख्या सिद्धांत के भी बहुत-से प्रश्नों पर प्रकाश डाला गया है। गणितसारसंग्रह' की विशेषता यह है कि यह पूर्णतया गणित का ग्रंथ है जबकि महावीर से पहले के आचार्यों ने गणित को ज्योतिष की रचनाओं में मिला दिया है। महावीर से पहले की रचनाओं में प्रमुख नियम तो मिलते हैं परन्तु उदाहरण और प्रश्न नगण्य हैं। महावीराचार्य ने नियम, उदाहरण और प्रश्न सब दिए हैं परन्तु प्रमाण इसमें भी नहीं हैं। इस दृष्टि से यह ग्रन्थ अनेक मध्ययुगीन भारतीय, अरबी और पाश्चात्य अन्यों से भिन्न नहीं है जिनमें विषय का मतांध निरूपण किया जाता था। गणित के अधिकांश भारतीय ग्रन्थों में तीन भाग होते हैं-मुख्य भाग जिसमें नियम और प्रश्नों की शर्ते दी रहती हैं। विशेष भाग जिसमें प्रश्नों की शर्तों तथा उदाहरणों को इस तरह दिया जाता है कि परिकलन में आसानी हो; और अंत में परवर्ती आचार्यों की टीका दी जाती है। प्रत्येक भाग की अपनी-अपनी विशेषताएं होती हैं। ग्रन्थ का मुख्य भाग पद्य में होता है जिसमें लय नहीं होती परन्तु छंद का ध्यान रखा जाता है। गणित के चिह्न, रेखाचित्र और सूत्र नहीं दिए जाते हैं, संख्याओं को भी शब्दों के द्वारा व्यक्त किया जाता है। दूसरे भाग में प्रश्नों के प्रतिबंधों (शर्तों) और उदाहरणों को सारणियों या पट्टिकाओं के रूप में दिया जाता है। इस भाग में चिह्नों का व्यापक प्रयोग होता है, रेखागणित के प्रश्नों में रेखाचित्र भी दिए रहते हैं। अंतिम भाग में टीका के साथ प्रश्नों के विस्तृत हल तथा उदाहरण दिए जाते हैं और साथ में अन्य ग्रन्थों के संदर्भ और उद्धरण भी। महावीराचार्य के ग्रन्थ में नौ अध्याय तथा 1131 श्लोक हैं। इनमें से 452 श्लोक नियमों के हैं तथा 679 श्लोकों में उदाहरण तथा प्रश्न दिए गए हैं। *इस संक्षिप्त अनुवाद में अंकगणीत के अंत को छोड़ दिया गा। है। जन प्राच्य विधाएं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211694
Book TitleMahaviracharya krut Ganitasar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlexzander Volodraski
PublisherZ_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf
Publication Year1987
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationArticle & Mathematics
File Size2 MB
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