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________________ 'गणितसारसंग्रह' मध्ययुगीन भारतीय गणित के ग्रन्थों में सबसे बड़ा है। इसका एक कारण यह है कि इसमें उदाहरणों का अंश मुख्य ग्रन्थ का 3/5वां भाग है । दूसरा कारण यह है कि महावीर ने नियम अधिक विस्तार से दिए हैं। सामान्य नियमों के अतिरिक्त महावीर ने विशिष्ट परिस्थितियों के लिये अलग-अलग नियम भी दिए हैं जो अन्य ग्रन्थों में नहीं मिलते । संख्याओं के लिये प्रयुक्त शब्द-चिह्न इस प्रकार हैं0-आकाश 1-चंद्र 2-नेत्र, हस्त 3-अग्नि, शिव के नेत्र 4-सागर 5-ज्ञानेन्द्रियाँ, बाण 6-ऋतु 7-शिखर, अश्व 8-सेना, हस्ति, दिशाएँ, शरीर 9-संख्याएँ, ग्रह, पदार्थ यह शब्द-प्रणाली केवल संख्याओं को व्यक्त करने के लिये थी। इसके द्वारा पूरा प्रश्न हल करना असंभव है। इस प्रणाली को समझने के लिये प्राचीन भारतीय साहित्य, धर्म और मिथकों को अच्छी तरह जानना आवश्यक था। भारत में गणित को बहुत ऊँचा स्थान प्राप्त था। अपने इस ग्रन्थ के आरम्भ में संज्ञाधिकार प्रकरण में गणितशास्त्र की प्रशंसा में महावीराचार्य ने इस प्रकार लिखा है लौकिके वैदिके वापि तथा सामायिकेऽपि यः । व्यापारस्तत्र सर्वत्र संख्यानमुपयुज्यते ।। कामतन्त्रेऽर्थशास्त्र च गान्धर्वे नाटकेऽपि वा। सूपशास्त्रे तथा वैद्ये वास्तुविद्यादिवस्तुषु । छन्दोऽलंकारकाव्येषु तर्कव्याकरणादिषु । कलागुणेषु सर्वेषु प्रस्तुतं गणितं परम् ॥ सूर्यादिग्रहचारेषु ग्रहण ग्रहसंयुतौ। त्रिप्रश्ने चन्द्रवृत्तौ च सर्वत्रांगीकृतं हि तत् ।। द्वीपसागरशैलानां संख्याव्यासपरिक्षिपः । भवनव्यन्तरज्योतिर्लोकल्पाधिवासिनाम् ॥ नारकाणां च सर्वेषां श्रेणीबन्धेन्द्रकोत्कराः। प्रकीर्णकप्रमाणाद्या बुध्यन्ते गणितेन ते॥ बीज गणित संस्कृत में बीज गणित के लिए कई नाम हैं। उनमें से एक है अव्यक्त गणित अर्थात् अज्ञात राशि की गणना की कला। अंक गणित में, जिसे व्यक्त गणित भी कहते हैं, ज्ञात राशि की गणना की जाती है। ऋण संख्याओं के क्रिया नियम जो ब्रह्मगुप्त की रचनाओं में भी मिलते हैं, महावीर ने इस प्रकार दिये हैं :-"यदि ऋण राशि को ऋण राशि से या धन राशि को धन राशि से गुणा किया जाए या उन्हें विभाजित किया जाये तो उनका फल धन राशि ही होगा। आचार्यरत्न श्री देशभषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211694
Book TitleMahaviracharya krut Ganitasar Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAlexzander Volodraski
PublisherZ_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf
Publication Year1987
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationArticle & Mathematics
File Size2 MB
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