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________________ योग्य व्यक्तियों को शिक्षा दी जाती थी / दया, चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व का विकास, नागरिक एवं सामाजिक कर्तव्यों एवं दायित्वों का पालन, शिक्षा के लक्ष्य होते थे। शिक्षा के क्षेत्र में गुरुकुल प्रणाली का विशिष्ट स्थान था। गुरु-शिष्य के संबंध मधुर थे। विविध विषयों में शिक्षा दी जाती थी / पाठ्यक्रम और उनकी अवधि का निर्धारण, विद्यार्थियों की इच्छा, सामर्थ्य और उनकी सुविधानुसार होता था। स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन दिया जाता था। अभिव्यक्ति का माध्यम प्राकृत भाषा थी / साहित्यिक गतिविधियां इस युग में खूब फली-फूली / शिल्पकला के विकास के फलस्वरूप ही भवनों, दुर्गों, जलाशयों, नहरों आदि का निर्माण संभव हो सका। आर्थिक परिस्थितियाँ ग्रामीण अर्थ व्यवस्था का केन्द्रबिन्दु ग्राम था / ग्रामीण जनता की आजीविका का मुख्य साधन खेती था / कृषि में नई-नई पद्धतियों का विकास हुआ / उस युग के साहित्यिक स्रोतों से ज्ञात होता है कि खेतों में हल चलाये जाते थे. खेतों की सीमा पर बाड़ लगाई जाती थी, बीज बोये जाते थे। खेतों में निन्दाई होती थी। फसल काटने और कटी हई फसलों के गद्रर बांधने का भी वर्णन मिलता है। कुओं और जलाशयों से सिंचाई होती थी। उज्जैन और वैशाली में पूरातत्व विभाग द्वारा जो खुदाई कार्य हुवा है वहां इनके भग्नावशेष प्राप्त हुवे हैं। खेती के लिये पशओं में गाय, भैंस, बकरी, भेड़, गधे, ऊँट, सूअर और कुत्तों का उपयोग होता था। रुई, ऊन, चांवल, गेहूं, चना, सेम, नासपाती, अरण्डी, सरसों, शीशम, अदरक, लोंग, हल्दी, जीरा, मिर्ची ब गन्ने की फसलें होती थी। अनेक प्रकार की वनस्पतियाँ फूल-फल और पान की खेती होती थी। जानवरों एवं पक्षियों से खड़ी फसल की रक्षा के लिये अनेक उपाय किये जाते थे। खेतों के अतिरिक्त कताई-बनाई (मिट्टी के तकुए प्राप्त हुवे हैं), सुथारी, लुहारी आदि धंधों का विवरण उपलब्ध साहित्य में मिलता है / लोहे गलाने की भट्टियों का उल्लेख मिलता है तथा पुरातत्व खदाई में लोहे की वस्तुएँ प्राप्त हई हैं। हाथी दाँत पर काम, माला बनाना, इत्र बनाना आदि कार्य भी होते थे। गौंद, औषधियाँ, रसायन एवं रंगाई तथा चमड़े आदि के गृह उद्योग भी चलते थे। भवन निर्माण का कार्य खूब होता था। विदेशों से एवं देश में व्यापार-व्यवसाय उन्नति पर था। सामुद्रिक व्यापार के भी प्रमाण मिलते हैं। बिरस-निर्मद के नेबचन्द नेजर के राजमहल में भारतीय देवदारु की एक बल्ली मिली है / बावरू और सुपारक जातकों, दिध-निकाय और लंका के इतिहास में भी भारत के विदेशी व्यापार का वर्णन मिलता है, इस यग के आर्थिक जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना व्यापार और उद्योगों को श्रेणियों में संगठित करने की है। व्यापार में सिक्कों का प्रचलन दुसरी महत्वपूर्ण बात थी / इस यग के सिक्के भीर, पैला, पतराहा, मच्छाटोली आदि स्थानों में पाये गये हैं। कर्ज देने की प्रथा भी थी / पाणिनी ने विभिन्न माप-तौल का उल्लेख किया है। चिरद, वैशाली और एरन की खुदाइयों से भी उस युग के माप-तौलों की जानकारी मिली / बड़ी-बड़ी मण्डियों में वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता था। मण्डियों में वस्तुओं के मूल्यों एवं मूल्य निर्धारण में होने वाली सौदेबाजी के भी संकेत मिलते हैं। धार्मिक परिस्थितियाँ धार्मिक क्षेत्र में न केवल भारत में अपितु समस्त विश्व में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। महावीर का युग जनजागरण का युग कहलाता है / सभ्यता के विभिन्न केन्द्रों पर अचानक और एक साथ धार्मिक आन्दोलन चालू हुए। ईरान में जरुस्त्रम ने अद्वैत का उपदेश देकर धार्मिक क्रियाकाण्ड के विरुद्ध विद्रोह किया। यूनान में हेराक्लिटस और पाइथोगोरस ने पुनर्जन्म की चर्चा की और जनता को शुभ कार्य करने के लिये प्रोत्साहित किया / चीन में कन्फुसियस और लाओत्से ने प्रचलित धारणाओं के विपरीत नई विचार धारा प्रस्तुत की / बेबीलोन की अधीनता में रहे यहूदियों ने यहोवा" में दृढ़ विश्वास प्रकट किया। भारत में ब्राह्मणवाद के विरुद्ध कई संसार से विरक्तिवैराग्य संबंधी तथा अन्य बौद्धिक आन्दोलन उभरे, जिनमें बौद्ध एवं जैन अग्रणी थे। ईसा से छ: शताब्दी पूर्व इन्होंने वही किया जो लूथर और कोल्विन ने ई० 19 वीं शताब्दी में किया। अहिंसा, अचौर्य, अपरिग्रह, सत्य आदि के उपदेश दिये जाने लगे / धार्मिक सहिष्णुता का आग्रह किया गया और मोक्ष प्राप्ति पर जोर दिया गया / प्रतिद्वन्द्वी विचारधाराओं एवं सम्प्रदायों के आपसी मतभेदों के फलस्वरूप जनता में आध्यात्मिक चेतना जाग्रत हुई / स्वर्ग और नरक में लोगों का विश्वास था और ऐसी मान्यता थी कि अच्छे कार्यों का फल स्वर्ग और बुरे कार्यों का फल नरक था। कला साहित्यिक रचनाओं से ज्ञात होता है कि राजमहल राजधानी के मध्य में बनाया जाता था और उसके आसपास परकोटा होता था। उसमें महल दो मंजिला होता था और उसमें तीन आंगन होते थे। दीवालों और खंभों पर सुन्दर आकृतियाँ बनाई जाती थीं। भवन ईंट, पत्थर और लकड़ी के बने होते थे। भवनों में खिड़कियों, दरवाजों एवं बरामदों की व्यवस्था होती थी। शासकीय एवं अन्य भवनों के निर्माण में स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं का ध्यान रखा जाता था। कहीं-कहीं देवक्लिकों एवं चैत्यों का वर्णन मिलता है / पुरातत्व विभागों द्वारा विभिन्न स्थानों पर की गई खुदाई से 'स्तूपों" के निर्माण पर प्रकाश पड़ता है। जैन सर्वतीर्थ संग्रह पुस्तक से ज्ञात होता है कि प्रद्योत ने उज्जैन, दशपुर एवं विदिशा में जीवन्त स्वामी (महावीर) की मूर्तियां स्थापित की थी। पुरातत्व विभाग की खोजों एवं साहित्यिक कृतियों से महावीर काल में बनी, मिट्टी व पकी हुई मिट्टी से बने बर्तनों का ज्ञान होता है। जैन एवं बौद्ध साहित्य से पता चलता है कि कला की दृष्टि से धार्मिक एवं अन्य चित्रकारी का बड़ा महत्व था। इस काल के चित्र पंचमड़ी की महादेव पहाड़ियों की गुफाओं में, भोपाल के पास भीम बैटका, मन्दसौर के पास मोरी, सिंघनपुरा, कबरा पहाड़, लिकुनिया, कोहवार, मेहरिदा, भालदारिया और मिरजापुर में बीजागढ़ तथा बांदा में मानिकपुर में पाये जाते हैं। कुछ धातु, हड्डी और पत्थर की वस्तुएं भी खुदाई से प्राप्त हुई हैं। मुद्राएं, मोहरों, रंग लगाने की कुम्हार की कूचियों, पत्थरों के मूसल, चक्की एवं तश्तरियों आदि प्राप्त वस्तुओं से उस युग की कला की झांकियां देखने को मिलती हैं / 122 राजेन्द्र-ज्योति Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211690
Book TitleMahavir Yugin Kal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorS M Pahadiya
PublisherZ_Rajendrasuri_Janma_Sardh_Shatabdi_Granth_012039.pdf
Publication Year1977
Total Pages3
LanguageHindi
ClassificationArticle & Society
File Size501 KB
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