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________________ एवं दृष्टिकोणों के मध्य समन्वय का मार्ग प्रस्तुत कर यथार्थ सम्यक् सांसारिक समन्वय एवं एकता का सेतु: ज्ञान का बोध कराया / इसके माध्यम से महावीर ने विविध धर्मों, अनेकांत दर्शन की उपादेयता वस्तुस्वरूप के यथार्थ ज्ञान वर्गों, सम्प्रदायों एवं मत-मतान्तरों में विभक्त मानवता को एक सूत्र एक सूत्र तथा धार्मिक एवं साम्प्रदायिक मतभेदों के निराकरण तक ही में पिरोने का सहज सरल एवं सर्वत्र सुलभ सूत्र समर्पित किया। सीमित नहीं है / जीवन के विस्तृत व्यवहार क्षेत्र में समन्वय एवं अनेकांत दर्शन इस प्रकार वस्तु स्वरूप से सम्बन्धित मतभेद एकता की दृष्टि से यह चमत्कारी औषधि है / वर्तमान परिप्रेक्ष्य में एवं विवाद आदि को दूरकर विविध दृष्टिकोणों को जोड़ने एवं जबकि विश्व आर्थिक दृष्टि से पूंजीवाद एवं साम्यवाद तथा समन्वित करने की उन्मुक्त वैचारिक क्रान्ति थी जिसके द्वारा वस्तु राजनैतिक दृष्टि से लोकतंत्र एवं अधिनायकत्व (तानाशाही) के द्वंद्व स्वरूप के खण्ड-खण्ड विभक्त ज्ञान का उपयोग उसकी समग्रता- में फंसा हुआ है, अनेकांत दर्शन इन विरोधी विचारधाराओं के सम्पूर्णता जानने हेतु किया जाने लगा और जिसके माध्यम से मध्य समन्वय हेतु प्रभावकारी सेतु है / आर्थिक एवं राजनैतिक अखण्ड स्वरूप का ज्ञान उसके स्वभाव की परिपूर्णता के संदर्भ में क्षेत्रों में इन दोनों परस्पर विरोधी विचारधाराओं के विविध प्रयोग संभव हुआ। निर्ममता से मानवता के ऊपर किये जा रहे हैं / परस्पर अविश्वास अहिंसक जीवन का आधार : एवं घृणा के वातावरण में समूची मानव जाति के चिरंतन विकास की गति अवरुद्ध हो गयी है। मानवीय महत्तम कल्याण के आत्मा अपने ज्ञान स्वभाव में स्थिर रहे, यही उसका सहज आदर्शों की ओट में मानव जीवन यंत्रवत् बन गया है | आत्मशांत एवं अहिंसक भाव है | आत्मा में उठने वाले मोह, राग, द्वेष / वैभव एवं आत्मिकगुणों के विकास के स्थान पर भौतिक समृद्धि के परिणाम भाव-हिसा है जबकि प्राणी को मारना, सताना, अग- को वरीयता दी जा रही है। हाला भंग करना आदि द्रव्य हिंसा कहलाता है / अहिंसक जीवन का संघर्ष, स्पर्धा, अविश्वास, अवसरवाद एवं भौतिकवाद की प्रारम्भ स्वच्छ-निर्मल वैचारिक भाव भूमि से होता है | जब विचार लम्बी दौड़ में कब महानाश का बिन्दु मिल जावे, कोई कल्पना नहीं एकांगी, आग्रही होते हैं तब जीवन भी तदनुसार व्यक्तिहित में की सकती है / ऐसी स्थिति में “अनेक धर्मात्मक वस्तुस्वरूप पर केन्द्रित होकर हिंसक हो जाता है / ऐसे व्यक्ति के आचार में आधारित उन्मुक्त चिंतन पद्धति युक्त अनेकांत दर्शन ही एक मात्र अहिंसा का प्रवेश होना अशक्य है / ठीक इसके विपरीत उन्मुक्त ऐसा समन्वयकारी मार्ग है जो सांसारिक मतभेद, विवाद, वैमनस्य विचार चिंतन एवं अनेकांतिक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति वस्तु स्वरूप एवं विषमता पूर्ण आचार-विचार की गहरी खाई पाटने की क्षमता की विराटता को सम्यक् रूप से समझते हुये मानसिक एवं रखता है और वस्तु स्वरूप का यथार्थ बोध कराकर आत्मसामाजिक धरातल पर सहज ही अहिंसक आचार पद्धति अपनाता कल्याणकारी, अहिंसक, अपरिग्रही समाज व्यवस्था द्वारा सर्वोदय हुआ अपरिग्रही जीवनयापन करता है। यही वह बिन्दु है जहां से का ठोस आधार प्रस्तुत करता है / आवश्यक है कि मस्तिष्क के जीवन में धर्म का प्रवेश होता है / इस दृष्टि से अनेकांतिक दर्शन बन्द द्वार खोलकर हम मिथ्या, एकांतवादी एवं अज्ञानयुक्त दूषित से जीवन में अहिंसक आचार एवं अपरिग्रही जीवन को सशक्त वायु का निष्कासन करे और अनेकांत दर्शन की निर्मल विचारआधार मिलता है, जो अन्यथा संभव नहीं है। ज्ञान-रश्मियों से अंतरतम को आलोकित होने दें तभी तीर्थकर महावीर की, लोककल्याणकारी साधना होगी / मधुकर-मौक्तिक भगवान् ने जो कहा है, वह सत्य है / असत्य बिल्कुल नहीं है / यहाँ तो प्रसंग आने पर हमें किसी सत्य की अनुभूति होती है / जब हम अरिहंत परमात्मा द्वारा प्रदत्त ज्ञान-चक्षुओं से इस जगत् को देखते हैं, तब यह अनुभव होता है कि अरिहंत से दूर रहने के कारण हम कितने दुःखी हो गये हैं। अरिहंत के निकट रह जाते तो दुःखी नहीं होते। - जैनाचार्य श्रीमद् जयंतसेनसूरि मधुकर' र एक का है / है, तो काम भयदि कोई है, कराने वाले हर व्यक्ति किसी-न-किसी को अपना साध्य बनाता है | हो सकता है, किसी का साध्य शुद्ध हो और किसी का अशुद्धः पर साध्य हर एक जीव का होता ही है। किसी का साध्य अमृत है, किसी का जहर, पर साध्य हर एक का है। सभी अपना साध्य पाने के लिए प्रयत्नशील हैं। ज्ञानी कहते हैं कि यदि साध्य उल्टा है, तो काम भी उल्टा ही होगा और यदि साध्य सीधा है, तो काम भी सीधा ही होगा। हमारे लिए सीधा साध्य यदि कोई है, तो वे पंच परमेष्ठी ही हैं। यद्यपि हमारा साध्य सिद्ध पद है, फिर भी उस साध्य की स्थिति प्राप्त कराने वाले पंच परमेष्ठी हैं, इसलिए पंच परमेष्ठी भी साध्य है। - जैनाचार्य श्रीमद् जयंतसेनसूरि 'मधुकर' श्रीमद् जयन्तसेनसूरि अभिनन्दन ग्रंथ / विश्लेषण (76) अलंकरण है दान का, जिस मानव के पास / जयन्तसेन मिले उसे, यशोकीर्ति अधिवास / / www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.211672
Book TitleMahavir ka Unmukta Vichar kranti Anekant Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendrakumar Bansal
PublisherZ_Jayantsensuri_Abhinandan_Granth_012046.pdf
Publication Year
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Anekantvad
File Size4 MB
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