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________________ 338 ] समय सुन्दर और उनका छत्तीसी साहित्य घाणी, घट्टी ऊंखले, जीव जे पीड़ेसि / खामिस तु नहिं तरि नरक मई, धारणी मांहि पीलेसि // 17 // अतः कवि कहता है, इस प्रकार के पाप जिस किसी ने इस भव अथवा पर-भव में किए हों वह उन पापों का नाम ले-लेकर क्षमा-प्रार्थना (मालोचना) करके पश्चाताप करे जिससे उन पापों से छुटकारा मिल जाय __ इण भव परभव एहवा, कीधा हवे जे पाप / नाम लेइ तू खामजे, करिजे पछताप // 34 / / पापालोचन में न तो कोई खर्च होता हैं एवं न ही किसी प्रकार का शारीरिक श्रम ही करना पड़ता है अतः इसमें कमी ढील नहीं करनी चाहिए। अालोचना के पश्चात् मन को वैराग्य की ओर उन्मुख कर लेना चाहिए जिससे सही सुख की प्राप्ति हो सके-- खरच कोई लागस्य नहीं, देह में नहिं दुख / पण मन वैराग वाल जे, सही पामिस सुख / / 35 / / जो लोग जीवन भर अपने राग-द्वेषों के लिये क्षमापना नहीं करते, वे अनंत काल तक भव-भ्रमण से मुक्त नहीं हो सकते राग द्वेष खाम्या नहीं, जां जीव्यउ तां सीम / अनंतानुबंधी ते थया, कहि करिस तू केम // 21 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211643
Book TitleMahakavi Samay Sundar aur unka Chattisi Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanarayan Swami
PublisherZ_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf
Publication Year1971
Total Pages14
LanguageHindi
ClassificationArticle & Kavya
File Size928 KB
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