________________ चतुर्थ खण्ड / 266 (12) कोई कितना भी विद्वान् हो पर मनोनिग्रही नहीं तो नरक ही जाएगा। जब कभी भी मोक्ष होगा तब मनोनिग्रही को ही होगा। मनोनिग्रह का उपाय स्वाध्याय, योग-वहन, चारित्रक्रिया का व्यापार, बारह भावना का चिन्तन, मन-वचन-काय की सरलता है। (33) जिसके मन रूपी वन में भावना अध्यवसाय रूपी सिंह जागत है, वहाँ दुर्ध्यान रूपी शूकर कभी नहीं आएगा। जिसने मन को साध लिया उसने सब साध लिया, ऐसा कवि आनंदघन का मत है। (14) जो शरीर से नहीं, मन से संसार त्यागते हैं, वे ही भगवान् के निकट हैं। यह कहने वाले तुकाराम ने हिन्दी भाषा में लिखा-कहे तुका मन यू मिल राखो। राम रस जिह्वा नित फल चाखो। (15) कबीर के शब्दों में मन का मुरीद सारा संसार है, गुरु का मुरीद कोई साधु ही है / मन समुद्र है, लहर है, इसमें अनेक डूबते हैं, बहते हैं, पर विवेकी बहते नहीं बचते हैं / (16) विहारी के शब्दों में जिसका मन कच्चा है, उसका नाचना व्यर्थ है। जप, माला, छापा, तिलक से क्या होगा? राम तो सच्चे मन पर रीझते हैं। जब तक मन में कपट के कपाट लगे हैं, तब तक भगवान भला कैसे पा सकते हैं ? 'मन : एक चिन्तन : विश्लेषण' निबन्ध का समापन करते हुए यही लिखना है कि मन को शिक्षा दो, मन की परीक्षा लो / मन को साथ लेकर चलो / मन से बात करो / मन को आधार बनायो / मन की मान्यता करो। मन के राक्षस को काम बतायो / मन के साक्षर को ठीक तरह पढ़ाओ। -बजाज खाना जावरा (म. प्र.) 30 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org