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________________ चतुर्थ खण्ड | २२६ १०. सुन्दरकवरी बाई (र. का. सं. १८१७ से १८५३) कवयित्री सुन्दरकवरी बाई भक्त कवि नागरीदास की बहिन थीं। ये सदैव कृष्णभक्ति में लीन रहने वाली थीं। इनका विवाह राघवगढ़ के राजा बलभद्रसिंह के कुंवर बलवंतसिंह के साथ हुआ। साहित्यिक वातावरण में पली सुन्दरकवरी बाई का झुकाव हरिभक्ति की. ओर प्रारम्भ से ही रहा । इनके लिखे नेहनिधि, वृन्दावन गोपी माहात्म्य, रसपुंज, भावनाप्रकाश, संकेत युगल आदि ११ ग्रन्थ मिलते हैं। इन्होंने भावानुकूल विभिन्न छंदों में कृष्णराधा की लीलाओं का सरस वर्णन प्रस्तुत किया है। ११. छत्रकुवरी बाई (र. का सं. १७०३ से १७९०) कवयित्री छत्रकवरी बाई नागरीदास की पोती थीं। इनका विवाह कोटडे के खींची गोपालसिंह के साथ हुआ था। इनके लिखे प्रेमविनोद ग्रंथ में राधाकृष्ण की प्रेमलीलाओं का चित्रण है। रस की दृष्टि से इनकी कविताएँ शृगाररस प्रधान हैं परन्तु इसमें भी भक्ति की सुखद सरिता प्रवहमान है। इनके लिये सांझी के पद बहुत ही सरस व मधुर हैं। इस धारा की अन्य कवयित्रियों में बीरां (सं. १७५० से १८००) महारानी सोन कंवरी (सं. १७४५ से १८००), दासी सुन्दर (१८ वीं शती का पूर्वार्द्ध), प्रानंदी देवी गोस्वामी (१८ वीं शती का पूर्वार्द्ध) आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। व्यधारा को कवयित्रियाँ सगुण काव्यधारा की भाँति निर्गुणकाव्यधारा भी जनमानस को प्रभावित करती रही है। गोरखनाथ और बाद में कबीर ने इस प्रवृत्ति को विशेष गति और गरिमा प्रदान की। इस काव्यधारा में मूर्तिपूजा का विरोध करते हुए पूजा के बाह्य विधि-विधानों का खण्डन किया गया है। ईश्वर की अद्वैतभावोन्मुखी उपासना पर विशेष बल देते हुए जातिवाद का खण्डन कर उपासना का द्वार सब वर्ण के लोगों के लिए खोल दिया गया। राजस्थान में निर्गुण मार्गी कई सन्त-सम्प्रदाय प्रतिष्ठित हुए जिनमें कवियों के साथ-साथ कई कवयित्रियां भी हुई। इस धारा की प्रमुख कवयित्रियों का परिचय इस प्रकार है १. सहजो बाई (र. का. सं. १८ वीं शती) कवयित्री सहजो बाई का जन्म अलवर में ढूंसर जाति के श्री हरप्रसाद के घर हा । चरनदासी सम्प्रदाय के प्रवर्तक चरणदासजी इनके गुरु थे। गुरु और ईश्वर के प्रति इनकी अटूट श्रद्धा थी। इनके ग्रंथ 'सहज प्रकाश' में गुरु महिमा और सांसारिक नश्वरता का मार्मिक वर्णन है । प्रभुनामस्मरण को महत्त्व देती हुई वे कहती हैं सहजो फिर पछतायेगी, स्वास निकसी जब जाय । जब लग रहे शरीर में, राम सुमिर गुन गाय ॥ २. दयाबाई (र. का. सं. १८०५ के आसपास) कवयित्री दयाबाई सहजोबाई की बहिन थीं। ये बड़ी विदुषी महिला थीं। इनके गुरु भी चरणदास जी थे। इनकी अपने गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा थी। उन्हीं की कृपा से इन्हें दिव्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211618
Book TitleMadhyakalin Rajasthani Kavya ke Vikas me Kaviyuitriyo ka Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Bhanavat
PublisherZ_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf
Publication Year1988
Total Pages13
LanguageHindi
ClassificationArticle & Kavya
File Size859 KB
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