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________________ चतुर्थ खण्ड | २२४ नाथी निहचो मन धरै, मति तलफावे जीव । जे हरिजी हिरदे बसे, तो भरि भरि हरि रस पीव ॥ ३. ब्रजवासी रानी बांकावतो (र० का० वि० सं० १७७६ से १८२०) महाराणी बांकावती कछवाह राजा आनन्दराय जी की पुत्री और किशनगढ़ के महाराजा राजसिंह की महाराणी थीं । आराध्य देव की भक्तिभावना में सराबोर होकर इन्होंने श्रीमद्भागवत का छंदोबद्ध राजस्थानी भाषा में अनुवाद किया जो आज भी 'ब्रजदासी भागवत' के नाम से सुविख्यात है । अनुवाद अत्यधिक सरस, सुबोध और प्रसादगुण युक्त है। कृष्ण का कवयित्री को इष्ट था और ये आठों याम कृष्ण ध्यान में पगी रहती थीं। वे कृष्ण की बारबार वंदना करती हुई कहती हैं बार बार वंदन करौं, श्री वृषभान कुवारी। जय जय श्री गोपाल जू, की कृपा मुरारी ॥ ४. गिरिराज कुवरी (र० का० सं० १९२२ से १९८०) भरतपुर की राजमाता गिरिराज कुंवरी का जन्म वि० सं० १९०२ में हमा। कृष्ण के प्रति भक्ति-भावना का आविर्भाव उनके मानस में बाल्यावस्था से था। आपका लिखा 'ब्रजराज विलास' कृष्ण-भक्तिभावना से भरा अतीव सरस ग्रंथ है। कृष्ण-मिलन हेतु उनकी आत्मा सदैव आतुर रहा करती थी । सूर की भांति इनके अनेक पदों में दैन्य भावनाएँ अभिव्यक्त हुई हैं-यथा मो सम कौन अधम जग माही। सगरी उमर बिसयन में खोई, हरि की सुधि बिसराई। मन भायो सोई तो कीनो, जन में भई हँसाई ॥ काम क्रोध मद लोभ मोह के, घेरे हुए सिपाही । इन ते मोहिं छुड़ावो स्वामी, गिरिराज है सरणाई ॥ ५. ब्रजभानकिशोरी (र० का० सं० १८८५ के आसपास) ये जोधपुर के महाराजा तख्तसिंह को रानी थीं। इन्होंने कृष्ण की विविध लीलाओं का सरस पदों में वर्णन किया है। कुछ पंक्तियाँ देखिये धेनु संग आवत श्याम बिहारी।। अंग रज छाजत छअत नैनन में कंज छटी कर धारी। निरखत नन्द ग्वाल सब निरखत, निरखत सबै ब्रजनारी ॥ ६. सौभाग्यकुवरी (र० का० सं० १९४६ से २००५ तक) जोधपुर नरेश तख्तसिंह की पुत्री सौभाग्यकुंवरी का जन्म सं० १९२६ में हमा। इनका विवाह बूंदी के राजा रघुवीरसिंह के साथ हुप्रा। इनकी लिखी 'सौभाग्य-बिहारी-भजनमाला' प्रकाशित हुई है। इसमें गुरुमहिमा, कृष्णलीला, वियोग-संयोग आदि भावों के पद मिलते हैं। कवयित्री के मन में कृष्ण के प्रति अगाध भक्ति है। उसने नंदलाल को अपने मन में बसा लिया है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211618
Book TitleMadhyakalin Rajasthani Kavya ke Vikas me Kaviyuitriyo ka Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Bhanavat
PublisherZ_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf
Publication Year1988
Total Pages13
LanguageHindi
ClassificationArticle & Kavya
File Size859 KB
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