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________________ मध्यकालीन राजस्थानी काव्य के विकास में कवयित्रियों का योगदान | २२३ ७. चन्द्रकला बाई (र० का० सं० १९२३ से १९६५) चन्द्रकला बाई बूंदी के राव गुलाबजी के घर की दासी थी। इनका जन्म वि० सं० १९२३ में बंदी में हुआ और देहावसान सं० १९६५ में । ये प्राशु कवयित्री थीं। हिन्दी के 'रसिक मित्र' और 'काव्य सुधाकर' आदि तत्कालीन पत्रों में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती थीं। कवयित्री की रचनाओं से पता चलता है कि वह बड़ी विदुषी होने के साथ साथ छंद, अलंकार और शब्दशास्त्र की ज्ञाता थी । इन्होंने करुणाशतक, पदवीप्रकाश, रामचरित्र महोत्सव-प्रकाश प्रादि अनेक काव्यकृतियों की रचना की। ३. कृष्णकाव्यधारा की कवयित्रियाँ हिन्दी और ब्रजभाषा में कृष्णकाव्यधारा का आविर्भाव प्रबल रूप से पुष्टिमार्ग के प्रवर्तक बल्लभाचार्य के अष्टछाप की स्थापना के बाद हुआ। कृष्ण के प्रति जिस वात्सल्य, सख्य और दास्य भाव की व्याख्या बल्लभाचार्य ने जिन विविध रूपों में की, उन्हीं का अनुसरण सूरदास, कुम्मनदास, परमानन्ददास प्रादि अष्टछाप के कवियों ने किया। कृष्ण भक्तिधारा का सर्वाधिक प्रचार प्रसार सूरदास ने किया था। इन्होंने वात्सल्य से प्रोतप्रोत कृष्ण की मनोमुग्धकारी बाललीलामों का चित्रण करके जनमानस का ध्यान नटवर नागर नन्दकिशोर की ओर आकर्षित किया । राजस्थानी कवयित्रियाँ भी कृष्णकाव्यधारा में अवगाहन किये बिना नहीं रह सकी । इन काव्यधारा की प्रमुख कवयित्रियाँ निम्नलिखित हैं १. मीरा मीरा मेड़ता के राठौड़ रतनसिंह की पुत्री और राव दूदाजी की पौत्री थीं। इनका जन्म संवत् १५६३ में हुआ । १३ वर्ष की आयु में मीरा का विवाह मेवाड़ के सुप्रसिद्ध राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र कुंवर भोजराज के साथ कर दिया गया । यौवन की देहरी पर पैर धरतेधरते मोरा की जीवनधारा यकायक बदल गई। उनके पति परलोक चल बसे। मीरा अपने गार्ह स्थिक बंधन तोड़ गिरधर की सेवा में रहने लगी। मीरा ने अपने आराध्य के चरणों में भावों की जो भावाञ्जलि चढ़ाई उसमें भक्तिभावनाओं का सहज स्पन्दन है। न उसमें कृत्रिमता है न दिखावा । मीरा की भक्ति दाम्पत्यभाव की थी। उसने कृष्ण को पतिरूप में माना और संयोग-वियोग की अनुभूति को विविध पदों में गाया। हिन्दी साहित्य में कबीर सूर, तुलसी आदि भक्त कवियों की भांति कवयित्री मीरा का भी गौरवपूर्ण स्थान है। इन पर अधिक चर्चा करना मात्र पिष्टपेषण होगा। २. सोढ़ी नाथी (र० का० सं० १७२५ के आसपास) सोढ़ी नाथी अमरकोट के राणा चन्द्रसेन की पोती, राणा भोज की पुत्री और जैसलमेर के पदच्युत रावल रामचन्द्र के महाराजा सुन्दरदास की पत्नी थीं। कवयित्री द्वारा रचित 'बालचरित' काव्य में ६२ राजस्थानी दोहे और सोरठों में कृष्ण की बाललीला का वर्णन किया गया है। 'कंसलीला' १०९ दोहों में लिखा गया काव्य है। कवयित्री ने कृष्ण के प्रति हृदय खोल कर अपनी भक्ति-भावना अर्पित की है। कृष्णभक्त कवयित्रियों में सोढ़ी नाथी का विशिष्ट स्थान है। अपने पाराध्य के प्रति अटल विश्वास प्रकट करती हई वे कहती हैं--- धम्मो दीवो संसार समुद्र में धर्म ही दीय है www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.211618
Book TitleMadhyakalin Rajasthani Kavya ke Vikas me Kaviyuitriyo ka Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShanta Bhanavat
PublisherZ_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf
Publication Year1988
Total Pages13
LanguageHindi
ClassificationArticle & Kavya
File Size859 KB
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