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________________ सकता। महात्मा सुकरात ने इसीलिए कहा था जो हम सत्य समझते हैं, वह वास्तव में सत्य का एक अंश है / हमें दूसरों की भी धारणा सुननी और माननी चाहिये क्योंकि सबकी धारणाओं के मिला देने से ही एक पूर्ण सत्य का उदय होता है। तीर्थंकर महावीर ने कहा था-यदि तुम अपने को सही मानते हो तो ठीक है परन्तु दूसरे को गलत मत समझो क्योंकि एक अंश की जानकारी तुम्हें है तो दूसरे अंश की जानकारी अन्य को हो सकती है। इसी आधार पर उन्होंने स्यादवाद् के सिद्धान्त को स्थापित किया था। (1) कथञ्चिद् है। (2) कथञ्चिद् नहीं है। (3) कथञ्चिद् है और नहीं है। (4) कथञ्चिद् अवक्तव्य है / (5) कथञ्चिद् है किन्तु कहा नहीं जा सकता। (6) कथञ्चिद् नहीं है तथापि अवक्तव्य है / (7) कथञ्चिद् है, नहीं है पर अवक्तव्य है। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्स्टीन ने अपने महान सिद्धान्त सापेक्षवाद को इसी भूमिका पर प्रतिष्ठित किया था। यह उदार दृष्टिकोण विश्व के दर्शनों, धर्मों, सम्प्रदायों एवं पंथों का समन्वय करता है / भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के काल में संघर्ष के क्षणों में भी वार्ता के द्वार हमेशा खुले रखे ट्र O गये क्योंकि हर समय दूसरों के विचारों का आदर करने का क्रम निभाया गया / दूसरों की धारणाओं को भी प्रतिष्ठा दी गई। यही कारण है कि स्वतन्त्रता आन्दोलन में सभी विचारधाराओं के लोगों ने एकजुट होकर भाग लिया और त्याग व बलिदान की परम्परा को विकसित कर विजयश्री को वरण किया / __ भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की अहिंसात्मकता ने विश्व में एक आदर्श तो प्रतिष्ठित किया ही है कि अहिंसा के द्वारा एक साम्राज्यवादी शक्ति को पराजित किया जा सकता है। इसे अनुकरणीय आदर्श मानकर विश्व में अन्यत्र भी इसका उपयोग किया गया। दक्षिण अफ्रीका में तो आज भी इस तरह का प्रयोग चल रहा है / इस अहिंसात्मकता के आदर्श की पृष्ठभूमि में तीर्थकर महावीर के जीवन म दर्शन की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अत्थि सत्थं परेण परं, नत्थि असत्थं परेण परं। -शस्त्र, अर्थात् हिंसा के साधन एक से बढ़कर एक है, अनेक प्रकार के हैं, जिनकी मारक क्षमता एक दूसरे से बढ़कर है। लेकिन अशस्त्र, अहिंसा सबसे बढ़कर है, इसकी शक्ति अपरिमित है, इसकी साधना से सभी का कल्याण होता है, सभी निर्भय बनते हैं। 440 षष्ठम खण्ड : विविध राष्ट्रीय सन्दर्भो में जैन-परम्परा की परिलब्धियाँ साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International POPNSate&Personal use Only www.jainelibraforg
SR No.211590
Book TitleBharatiya Swatantryanodalan ki Ahimsatmakta me Mahavir ke Jivan Darshan ki Bhumika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrahlad N Vajpai
PublisherZ_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf
Publication Year1990
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Society
File Size604 KB
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