________________ 538 : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय हैं. इसीलिए तत्तत् प्रान्तों में किसी का भी राज्य हो, सब प्रान्तों के वासी धार्मिक यात्राओं में समस्त देश में जाते थे. सांस्कृतिक दृष्टि से वे समस्त भारत को अपना देश समझते थे. भारतीय संस्कृति की अखिल भारतीय भावना ही प्रांतीय संघर्षों को बहुत-कुछ नियन्त्रण में रख सकती है. परन्तु इस सम्बन्ध में हमारा कर्तव्य केवल प्रान्तीय संघर्षों के प्रतिकार से ही समाप्त नहीं हो जाता. हमारा उत्तरदायित्व इससे बहुत अधिक है. आज के भारतवर्ष की एक बड़ी समस्या उसका सांप्रदायिक संघर्ष तथा पिछड़ी जातियों का प्रश्न है. भारतीय संस्कृति की अखिल भारतीय भावना का अभिप्राय मुख्यत: यह है कि हम उक्त समस्या का वास्तविक समाधान भारतीय संस्कृति की दृष्टि से कर सकें. भारतीय संस्कृति के सम्बन्ध में ऊपर दिखलाये हुए सिद्धांतों को दृष्टि में रख कर बड़े उदार हृदय से साम्प्रदायिक तथा पिछड़ी जातियों की समस्या को हाथ में लेने से ही उसका समाधान हम कर सकेंगे. सम्प्रदायों में परस्पर समादर और सम्मान की भावना स्थापित करने से, ऐसे जातीय तथा ऋतु-सम्बन्धी पर्वो और विभिन्न सम्प्रदायों के मान्य महापुरुषों की जयन्तियों की स्थापना से जिनमें सब प्रेमपूर्वक भाग ले सकें, तथा अधिक-से-अधिक सद्भावना के साथ बौद्धिक, नैतिक, साहित्यिक और कला-सम्बन्धी संपर्क स्थापित करने से ही सांप्रदायिक समस्या का समाधान हो सकता है. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org