SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राप्ति, समवशरण, ईश्वर-स्तुति, तत्त्व-निरूपण आदि के बाद कवि ने अन्त में विस्तार से अपना परिचय दिया है। इस प्रकार महावीर-चरित का वर्णन कवि नवलशाह ने परम्परागत रूप से किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में कवि ने जैन धर्म के विभिन्न सिद्धान्तों का प्रतिपादन जैन पुराणकारों की तरह ही किया है। ग्रन्थ में सोलह अधिकार रखने का कारण बताते हुए कवि ने बड़ी सरस कल्पनाओं का आधार लिया है। तीर्थंकर-माता ने सोलह स्वप्न देखे थे, महावीर ने पूर्वभव में सोलह कारण-भावनाओं का चिन्तन करके तीर्थकर प्रकृति का बंध किया था ; कार सोलह स्वर्ग हैं ; चन्द्रमा की सोलह कलाओं के पूर्ण होने पर ही पूर्णमासी होती है ; स्त्रियों के सोलह ही शृंगार बताए गए हैं, आठ कर्मों का नाश कर आठवीं पृथ्वी (मोक्ष) मिलती है / यह ग्रन्थ भी सोलह माह में ही लिखा गया। इन सब कारणों से ग्रंथ में सोलह अधिकार दिए गए हैं। वास्तव में कवि की यह सुन्दर कल्पना है। कविवर नवलशाह भगवान् महावीर के अनन्य भक्त थे / कवि के मत में भगवान के दर्शन-मात्र से ही जीवन सफल हो जाता है / वे स्पष्ट कहते हैं :-- दर्शन कर सुरराज हम, सन्मति सार्थक नाम / कर्म निकन्दन वीर हैं, वर्धमान गुणधाम / / स्पष्ट है कि कवि ने अपनी काव्यमयी वाणी द्वारा सम्पूर्ण ग्रन्थ में महावीर-चरित एवं जैन दर्शन के मूल सिद्धान्तों को उद्घाटित किया है। कवि नवलशाह ने वर्ण्य विषय के अनुकूल विभिन्न छंदों और अलंकारों का प्रयोग करके अपनी प्रतिभा का सफल प्रदर्शन किया है, कृति में कहीं भी कवि ने अनावश्यक शब्दाडम्बर नहीं दिखाया है। धर्मप्राण रचना होने के कारण यद्यपि इसका मूल्यांकन साहित्यिक स्तर से अपेक्षित नहीं है, तथापि इसमें कोई सन्देह नहीं है कि कवि ने धार्मिक तत्त्व-व्याख्या और उद्बोधन की दृष्टि से सार्थक शब्दावली का प्रयोग किया है / ग्रन्थ में दोहा, छप्पय, चौपाई, गीतिका, सोरठा, कवित्त, त्रिभंगी इत्यादि छंदों का प्रयोग मिलता है / अतः काव्य-सौष्ठव की दृष्टि से भी यह कृति सफल रही है। ___कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि 'भगवान् महावीर और उनका तत्त्व-दर्शन' नामक विशालकाय ग्रन्थ जैन धर्म को समझने के लिए एक विश्वकोश का कार्य कर सकेगा। संपादक की सूझ-बूझ के कारण ग्रन्थ का विभाजन विभिन्न अध्यायों में इस प्रकार हुआ है कि जैन धर्म के उद्भव और विकास से लेकर सम्पूर्ण जैन-दर्शन को इस भाँति समाहित कर लिया गया है कि रोचक शैली में ज्ञानवर्द्धन होता चलता है। नवलशाह कृत 'वर्धमान पुराण' को पहली बार यहाँ प्रस्तुत करके आचार्य देशभूषण जी ने जैन-साहित्य की काव्य-परम्परा में एक नया अध्याय जोड़ा है / ग्रन्थ में संकलित विभिन्न विद्वानों के लेख भगवान् महावीर को समझने में सहायक रहे हैं। इतनी विपुल सामग्री से मंडित इस विशालकाय ग्रन्थ का एकमात्र प्रकाशन-उद्देश्य यही रहा है कि भगवान् महावीर और उनके सम्बन्ध में सभी ज्ञातव्य विवरण जिज्ञासु जैन समाज और जैनेतर पाठकों को एक स्थान पर ही उपलब्ध हो जाए। निश्चित रूप से प्रस्तुत ग्रंथ अपने उद्देश्य में सफल रहा है। ENGNONOVIEMUOVONOMANTISSVVIWSMSVOMOVENOMOVOMM) आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211492
Book TitleMahavir aur Unka Tattva Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSureshchandra Gupt
PublisherZ_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf
Publication Year1987
Total Pages4
LanguageHindi
ClassificationArticle & Tirthankar
File Size626 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy