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________________ [३१] भी थीं। संघ वायड़, सैरिसा, सरखेज, आशापल्ली होते हुए खंभात पहुँचा । जिस प्रकार जिनेश्वरसूरिजी के पधारने पर सं० १२८६ में महामंत्री वस्तुपाल ने एवं स० १३६४-६७ में सेठ जेसल ने श्री जिनचन्द्रसूरिजी का प्रवेशोत्सव किया था उसी प्रकार सूरिजी का इस समय धूमधाम से प्रवेशोसब हुआ। आठ दिन तक नाना उत्सवादि संपन्न कर आनन्दपूर्वक यात्रा करते हुए शत्रुजय की ओर चले । घांघूका में मन्त्रदलीय ठ० उदयकरण ने संघ की बहुत भक्ति की । शत्रुंजय पहुँच कर सूरिजी ने दूसरी बार यात्रा की । तीर्थ के भंडार में १५००० की आमदनी हुई। आदिनाथ प्रभु के विधि चैत्य में नवनिर्मित चतुर्विंशति जिनालय, देवकुलकाओं पर कलश व ध्वजादि का आरोपण हुआ। संघ सहित सूरिमहाराज तलहटी में आये । लौटते समय संरिसा, संखेश्वर, पाडल होते हुए श्रावण शुक्ला ११ को भीमपल्ली पधारे । सं० १३८२ वैशाख शुक्ला ५ को विनयप्रभ, मतिप्रभ, हरिप्रभ, सोमप्रभ साधु एवं कमलश्री, ललितश्री को समारोहपूर्वक दीक्षा दी। पत्तन, पालनपुर, बीजापुर, आशापल्ली आदि का संघ भी उपस्थित था। तीन दिन अमारि उद्घोषणा के साथ बड़े उत्सव हुए। फिर सूरिजी साचौर पधारे। मासकल्प करके लाटहृद पधारे। संघ के आग्रह से बाड़मेर में चौमासा करके श्री जिनदत्तसूरि रचित चेत्यचंदनकुलक पर विस्तृत वृत्ति की रचना की । सं० १३०३ पौष शुक्ला १५ को जेसलमेर, लाटहद, साचौर, पालनपुरीय संघ के समक्ष अमारि घोषणापूर्वक बड़ो दोक्षा आदि अनेक उत्सव हुए । तदनन्तर जालोर संघ की विनती से विहार करके लवणखेटक पधारे । यहाँ सूरिजी के पूर्वज उद्धरण वाहित्रिक कारित शांतिनाथ जिनालय था एवं गुरु जिनचन्द्रसूरिजी का जन्म एवं दीक्षा यहीं हुई थी । यहाँ से समयाणा ( जन्मभूमि ) होते हुए जालोर पधारे । यहां उच्चपुर, देवराजपुर, पाटण, जेसलमेर, सिवाणा, Jain Education International श्रीमाल, साचौर, गुढहा आदि के संघ के समक्ष पंद्रह दिन तक दीक्षार्थियों के सत्कार सहित फाल्गुन कृष्ण को दीक्षा, प्रतिष्ठा, व्रतोच्चारणादि विविध उत्सव हुए। राजगृह तीर्थ के वैभारगिरि स्थित चतुर्विंशति जिनालय के मूलनायक महावीर स्वामी आदि छनेक पाषाण और धातु बिम्ब गुरुमूर्तियां आदि को प्रतिष्ठा एवं न्यायकीर्त्ति ललितकीर्ति, सोमकीर्ति अमरकीत्ति, ज्ञानकीति, देवकीर्ति६ साधुओं को दीक्षित दिया । जालोर से चैत्र कृष्ण में विहार कर समियाणा, खेड़ नगर होते हुए जेसलमेर महादुर्ग पधारे। सिन्ध देश के श्रावक अपने उधर पधारने के लिए बार-बार वीनति कर रहे थे अतः पत्रह दिन रहकर सिंध देश के देशवर नगर में पधारे। वहां स्वप्रतिष्ठित आदिनाथ प्रभु का वन्दन किया । फिर उच्चनगर पधारकर हिन्दु-मुसलमान सबको धर्मोपदेशों से आनन्दित किया । एक मास रहकर वापिस देरावर पधारे। सं० १३८४ माघ शु० ५ को उच्च देरावर, क्यासपुर बहरामपुर, मलिकपुर के श्रावकों और अधिकारियों के अनुरोध से प्रतिष्ठा, व्रतग्रहण आदि बड़े विस्तार से सम्पन्न किये। राणुककोट, क्यासपुर के लिए दो आदिनाथ मूलनायक बिंब व धातु-पाषाण की अनेक प्रतिमाएं प्रतिष्ठित की। भावमूर्ति, मोदमूर्ति, उदयमूर्ति, विजय मूर्ति, हेममूर्ति, भद्रमूर्ति, मेवमूर्ति, पद्ममूर्ति, हर्षमूर्ति आदि नौ साधु कुलधर्मा, विनयधर्मा और शीलधर्मा नामक तीन साध्वियों की दीक्षा हुई। सं० १३८५ फाल्गुन शु० ४ के दिन उच्त्रापुर, बहिरामपुर, क्यासपुर के खरतर गच्छीय संघ की विद्यमानता में नवदीक्षितों की उपस्थापना, अनेकों व्रतग्रहण व कमलाकर गणि को वाचनाचार्य पद दिया । सं० १३८६ में बहिरामपुर पधारे । वहां धर्मप्रभावना कर क्यासपुर के हिन्दुमुसलमान सबको आनन्दित किया । ६ दिन उत्सवादि के पश्चात् खोजावात पधारकर क्यासपुर पधारे। मुसल - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211377
Book TitlePragatprabhavi Dada Jinkushalsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherZ_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf
Publication Year1971
Total Pages6
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size3 MB
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