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________________ प्रगटप्रभावी दादा श्रीजिनकुशलसूरि [भंवरलाल नाहटा] प्रगटप्रभावी, भक्तवत्सल बीसरे दादा साहब श्री रहकर कोशवाणा पधारे और वहीं सं० १३७६ मिती आषाढ़ जिनकुशलसूरि अत्यन्त उदार और अपने समय के युगप्रधान शुक्ल ६ को अनशनपूर्वक स्वर्गवासी हुए। महापुरुष थे। आप मारवाड़. सामियाणा के छाजहड़ उस समय गुजरात की राजधानी पाटण में खरतरगोत्रीय मंत्रि देवराज के पुत्र जेसल या जिल्हागर के पुत्र गच्छ का प्रभुत्व बढ़ा-चढ़ा था। गच्छ के कर्णधारों ने थे और आपका जन्मनाम कर्मण था। सं० १३३७ मिती यहीं पर आचार्य पद-महोत्सव करने का निर्णय किया । भार्गशीर्ष कृष्ण ३ सोमवार के दिन पुनर्वसु नक्षत्र में आपका बड़े-बड़े आचार्य व श्रमणों सहित गुजरात, सिध, जन्म हुआ। आपके खानदान में धार्मिक संस्कार अत्यन्त राजस्थान और दिल्ली प्रदेश आदि के संध को निमन्त्रित कर श्लाघनीय थे। खरतरगच्छ नायक, चार राजाओं को बुलाया गया। सं० १३७७ मिती जेष्ठ कृष्ण ११ कुंभ लग्न प्रतिबोध करने वाले कलिकाल-केवली श्री जिनचन्द्रसूरि के में आचार्य पद का अभिषेक हुआ । उस समय राजेन्द्रचन्द्रापास आपने वैराग्यवासित होकर सं० १३४७ फाल्गुन चार्यजी के साथ उपाध्याय, वाचनाचार्यादि ३३ साधु शुक्ला ८ के दिन दीक्षा ली। गुरुमहाराज संसारपक्ष में आपके और २३ साध्वियाँ थीं। सुश्रावक जाल्हण के पुत्र तेजपाल, चाचा होते थे। आपका दीक्षानाम कुशल कीर्ति रखा गया। रुद्रपाल, जो मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र बच्छावत के पूर्वज थे, ने उस समय उपाध्याय विवेकसमुद्र, गच्छ में गीतार्थ और वयो- प्रचुर द्रव्यय कर महोत्सव मनाया। उन्होंने उस समय वृद्ध थे जिनके पास बड़े-बड़े विद्वान आचार्यों ने व्याकरण, १०० आचार्य, ७.० साधु और २४०० साध्वियों को न्याय, तर्क, अलंकार, ज्योतिष आदि का अध्ययन किया था। अपने घर बुलाकर प्रतिलाभ कर वस्त्र पहिराये। भीमकुशलकोतिजी का विद्याध्ययन भी आपके पास हुआ और पल्लो, पाटण, खंभात, बीजापुर आदि के संघ ने भी उत्सव सर्वत्र विचरते हुए शासन प्रभावना करने लगे। सं० में उल्लेखनीय योगदान किया था। वा० कुशलकीर्ति १३७५ माघसुदि १२ को आप गुरुमहाराज द्वारा वाचना- का नाम श्रीजिनकुशलसूरि प्रसिद्ध किया गया। चार्य पद से विभूषित हुए। सूरिजी सं० १३७८ का चातुर्मास भीमपल्ली करके ____ सम्राट कुतुबुद्दीन से निर्विरोध तीर्थयात्रा दोक्षा, मालारोपण, पदवी दान आदि अनेक धर्मप्रभावक का फरमान प्राप्त महतियाण अचलसिंह के साथ। कार्य करके अपने ज्ञानबल से विद्या-गुरु उपाध्यायश्री श्रीजिनचन्द्रसूरिजी महाराज हस्तिनापुर एवं मथुरा की विवेकसमुद्रजी का आयुशेष निकट ज्ञातकर पाटण पधारे यात्रा कर खंडासराय पधारे। वहाँ कम्परोग उत्पन्न होने और ज्येष्ठ कृष्ण १४ के दिन उन्हें अशन करवा दिया। पर अपना आयु-शेष निकट ज्ञात कर अपने पट्ट पर वा० - उपाध्यायजी पंच-परमेष्ठी ध्यान पूर्वक ज्येष्ठ शुवल २ को कुशलकीति गणि को अभिषिक्त करने का निर्देश-पत्र राजेन्द्रचन्द्राचार्य के नाम से विजयसिंह को सौंपा। सूरिजी राणा स्वर्गवासी हुए । सूरिजी ने मिती आषाढ़ शुक्ल १३ के दिन मालदेव चौहान की विनति से मेजता पधारे। वहां २४ विम उनके स्तूप की प्रतिष्ठा की ओर नहीं चातुर्मास किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211377
Book TitlePragatprabhavi Dada Jinkushalsuri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherZ_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf
Publication Year1971
Total Pages6
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size3 MB
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