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________________ संख्या', सत्', सम्प्रदान', सर्वनाम एवं हेतु संशाबों का उसी स्वरूप में प्रयोग किया है । पूज्यपाद देवनन्दी ने उपरिनिर्दिष्ट संज्ञाओं में से अनुस्वार, विराम तथा विसर्जनीय संज्ञाओं को परिभाषित न करके, जैनेन्द्र-व्याकरण के सूत्रों में उनका प्रयोग किया है। चन्द्रगोमी का अनुकरण करते हुए पूज्यपाद देवनन्दी ने एकवचन, द्विवचन तथा बहुवचन के लिए क्रमशः एक, द्वि तथा बहु संज्ञाओं का प्रयोग किया है।' २. जैनेन्द्र-व्याकरण में प्रयुक्त नवीन संज्ञाएं पूज्यपाद देवनन्दी ने व्याकरण का मौलिक स्वरूप प्रस्तुत करने के लिए अपने से पूर्ववर्ती व्याकरण-ग्रन्थों में विद्यमान अधिकांश संज्ञाओं के स्थान पर भिन्न संज्ञाओं का प्रयोग किया है जो इस प्रकार हैं० व्या अष्टा० काव्या १. अग, २/४/६४. आर्धधातुक, ३/४/११४. २. अन्य, १/२/१५२. प्रथम, १/४/१०१. प्रथम, आ०प्र०३. ३. अस्मद्, १/२/१५२. उत्तम, १/४/१०१ उत्तम, वही, ३. ४. इल, १/१/३४. षट्, १/१/२४. ५. उङ् १/१/६६. उपधा, १/१/६५. उपधा, च० प्र०११. ६. उज, १/१/६२. श्लु, १/९/६१. ७. उप, १/१/६२. लुक्, १/१/६१. ८. उस , १/१/६२. लुप, १/१/६१. ६. एप, १/१/१६ गुण, १/१/२. गुण, आ०प्र० ४३८. १०. ऐप १/१/१५. वृद्धि, १/१/१. वृद्धि, वही, ४३६. ११. कि, १/४/५६. सम्बुद्धि, २/३/४६. सम्बुद्धि, च० प्र० ५. १२. खम्, १/१/६१. लोप, १/१/६०. १३. ग, २/४/६३. सार्वधातुक, ३/४/११३. सार्वधातुक, आ० प्र० ३४. १४. गि, १/२/१३०. उपसर्ग, १/४/५६. १५. गु, १/२/१०२. अङग, १/४/१३. १६. घि, १/२/६६. लघु, १।४।१०. १७. ङ, १/१/४. अनुनासिक, १/१/८. अनुनासिक, स० प्र० १३. १८. च, ४/३/६. अभ्यास, ६/१/४. अभ्यास, आ. प्र. ८५. १६. जि, १/१/४५. सम्प्रसारण, १/१/४५. सम्प्रसारण, आ० प्र० ४३७. २०. झ, ४/१/११७. घ, १/१/२२. २१. झि, १/१/७४. अव्यय, १/१/३७. अव्यय, च० प्र० २१०. २२. त, १/१/२६. निष्ठा, १/१/२६. निष्ठा, कृ० प्र०८४. २३. थ, ४/३/४. अभ्यस्त, ६/१/५. अभ्यस्त, आ० प्र०६६. २४. दि, १/१/२०. प्रगृह य, १/१/११. प्रकृत्या, स०प्र०४२. २५. दु, १/१/६८. वृद्ध, १/१/७३. २६. द्रि, ४/२/8. तद्राज, ५/३/११६. २७. ध, १/१/३१. सर्वनामस्थान, १/१/४२. घुट, च० प्र० ३. २८. न्यक्, १/३/६३. उपसर्जन, १/२/४३. २६. प्र, १/१/११. ह्रस्व, १/२/२७. ह्रस्व, सं० प्र० ५. १. त.-वही, १/१/३३; वही, १/१/२३. २. तु.-बही, २/२/१०५; वही, ३/२/१२७. ३.तु.-बही, १/२/१११; वही, १/४/३२. .. तु.-वही, १/१/३५; वही, १/१/२७. ५. तु.-बही, १/२/१२६ वही १/४/५५. ६. त-बही, १/२/१५५; चा० व्या• १/४/१४८, आचार्यरन भी वेशभूषण जी महाराज अभिनम्बन प्रग्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211369
Book TitlePujyapad Devnandi ka Sanskrut Vyakaran ko Yogadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabha Kumari
PublisherZ_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf
Publication Year1987
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationArticle & Grammar
File Size3 MB
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