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________________ पुरुषार्थ सिद्धयुपाय : एक अध्ययन 255 संहिता को इस अमृत कुंभ को लगी हुई पूर्ण प्रामाणिकता की दिग्दर्शक जैन तत्त्व नीति की यह लोकविलक्षण मुद्रा है / विवेक से अमृतस्वरूप आचारसार का रसास्वाद यह अंतरात्मा का परम पुरुषार्थ है। इसीके द्वार से परमात्मपद की प्राप्ति है। जो नित्य निरूपलेप, स्वरूप में समवस्थित, उपघातविरहित, विशदतम, परमदरूप, कृतकृत्यकरूप, विश्वज्ञानरूप, परमानंदरूप शाश्वत अनुभूति स्वरूप है। आचार्य अमृतचंद्र का तत्त्वविवेचन जैसे लोकविलक्षण अद्भुत युक्तियों से भरपूर हुआ है उसी तरह उनकी ग्रन्थ की प्रशस्ति भी अदृष्टपूर्व उठी हुई आत्मा की उच्यता की द्योतक है " नाना वर्णों से बने शब्दों से पदों की रचना हुई। पदों में वाक्यों को बनाया / वाक्यों ने ही इस परमपवित्रतम शास्त्र को बनाया है इसमें हमारा कुछ नहीं है।" गौरवशाली आचार्य अमृतचंद्र जैसों का आत्मा ही यह कह सकता है। शतशः प्रणाम हो ऐसे अन्तरात्मा को। [ पुरुषार्थसिद्धयुपाय-श्रीमद् रायचंद जैन शास्त्र माला-(सरल हिंदी भाषा टीकासहित ) परमश्रुत प्रभावक मंडळ मु. अगास, पो. बोरीया व्हाया आनंद, गुजराथ मूल्य 3-25] मूल हिंदी टीकाकार श्री पं. टोडरमलजी और श्री पं. दौलतरामजी (वर्तमान हिंदी संस्करण श्री पं. नाथूरामजी प्रेमी) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211368
Book TitlePurusharth Siddhyupaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikchand Chavre
PublisherZ_Acharya_Shantisagar_Janma_Shatabdi_Mahotsav_Smruti_Granth_012022.pdf
Publication Year
Total Pages11
LanguageHindi
ClassificationArticle & Achar
File Size846 KB
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