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________________ हैं जिन्होंने दुष्काल के समय सम्पूर्ण गुजरात का पोषण किया था। एक समय था जब पूरे गुर्जर प्रान्त में ही नहीं; अपितु सम्पूर्ण भारत में इसके भव्यता की चर्चा थी । श्वेताम्बरों में इस तीर्थ को शत्रुजय और गिरनार की तरह ही पवित्र और पावनकारी माना जाता था। ईसा की पंद्रहवीं शताब्दी से इसका पतन प्रारम्भ हुआ और फिर वह ऊपर न उठा सका। इस महातीर्थ की ऐतिहासिकता निर्विवाद है । सम्राट अशोक के वंशधर राजा गंगसिंह ने सन् ८०० ई. में पावागढ के किले का एवं उसमें स्थित जिन मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया था। पावागढ़ के ईशान कोण में दो कि.मी. की दूरी पर और बड़ौदा के पूर्व २५ कि.मी. की दूरी पर गोधरा से दक्षिण ४२ कि.मी दूर चांपानेर का उल्लेख मिलता है। अब इस स्थान पर छोटा सा बाजार है। विक्रम की १९वीं शताब्दी में तपागच्छ के मुनि कविराज श्रीदीप विजयजी ने पुराने लेखादि के आधार पर लिखा है कि वि.सं. १११२ वैशाख सुदि पंचमी गुरुवार को पावागढ़ पर चौथे तीर्थंकर अभिनंदन स्वामी एवं जीरावला पार्श्वनाथ की अंजनशलाका-प्रतिष्ठा जैनाचार्य श्रीगुणसागर सूरि के द्वारा कराई गई थी। साथ ही उनकी भक्त शासन देवी कालिका की भी वहां स्थापना की गई थी। डॉ. भांडारकर द्वारा संशोधित और प्रकाशित अंचलगच्छ की पट्टावली में इसका महत्त्वपूर्ण उल्लेख है कि जयकेसर सूरी चांपानेर के राजा जयसिंह पताई रावल के राज्य में माने हुए आचार्य थे। पं. जिनहर्ष गणि ने वस्तुपाल चरित्र के तीसरे प्रस्ताव में लिखा है कि गुजरात से मालवा की ओर जाने वाले रास्ते पर गोधरा (गोधा) नाम का नगर था। उस नगर में धूंधल नाम का राजा राज्य करता था। वह धर्म की मर्यादाओं का उल्लंघन कर घोर पाप-कर्म करता था। उसके पूर्वज सोलंकी राजाओं की आज्ञा मानते थे; पर धुंधल ने उनकी आज्ञा में रहना अस्वीकार कर दिया। वह गुजरात से मालवा की ओर जाने वाले व्यापारियों को लूटने लगा। लूटे गए व्यापारियों ने गुजरात के राजा वीरधवल से फरियाद की । व्यापारियों की बात सुनकर वीर धवल ने धुंधल को दंडित करने का निर्णय किया । उसने अपने मंत्री तेजपाल को धुंधल से युद्ध करने की आज्ञा की। अपनी विशाल सेना लेकर तेजपाल गोधरा पहुंचा। तेजपाल और धुंधल के बीच भयंकर संग्राम हुआ। तेजपाल के पराक्रम के आगे धूंधल टिक नहीं पाया। वह हार गया। तेजपाल ने उसे लकड़ी के पिंजरे में बंद कर दिया। ४६ श्री विजयानंद सूरि स्वर्गारोहण शताब्दी ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211351
Book TitlePavagadh Tirth ki Aeitihasikta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandrasuri
PublisherZ_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf
Publication Year
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Tirth
File Size443 KB
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