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पाइअ-भासा
उम्मिल्लइ लायण्णं पयय-च्छायाएं सक्कयवयाणं । सक्कय-सक्कारुक्करिसणेण पययस्स वि पहावो ॥ (गउडवहो ६५) णवमत्थदसण-संनिवेससिसिराओ बंधरिद्धीओ ।
अविरलमिणमो आभुवणबंधमिह पययम्मि ॥ (गउडवहो ७२) अन्भअ-भावभंगिमं वंजमाणाणि पेच्छणिज्जाणि काणि चि पाइय-पज्जाणि
अज्जंगओ त्ति अज्जं गओ त्ति अज्जं गओ त्ति गणिरीए । पढमे विअ दिअहद्ध कुड्डो रेहाहि चित्तलिओ ॥ (गाथासप्तशती ३-८) उल्लावो मा दिज्जउ लोअ-विरुद्ध 'त्ति णाम काऊण ।
समुहापडिए को उण वेसे वि दिदि ण पाडेइ॥ (गाथासप्तशती ६-१४) पिबन्तु सुभासियामयं पाइअ-कव्वाणं वायगचणा
संतमसंतं दुक्खं सुहं च जाओ घरस्स जाणंति । ता पुत्तअ ! महिलाओ सेसाओ जरा मणुस्साणं ॥ (गाथासप्तशती ६-१२) पंकमइलेण छोरेक्कपाइणा दिण्णजाणुवडणेण । आनंदिज्जइ हलिओ पुत्तेण व सालिखेत्तेण ॥ (गाथासप्तशती ६-६७) कह मे परिणइआले खलसंगो होहिइ त्ति चितंतो। 'ओणअमुहो ससूओ' रुवइ व साली तुसारेण ॥ (गाथासप्तशती ६-६८) जंतिअ ! गुलं विमग्गसि ण य मे इच्छाइ वाहसे जंतं । अणरसिअ ! कि ण याणसि ण रसेण विणा गुलो होइ॥ (गाथासप्तशती ६-५४)
भविअमणिक्कंतदेहलीदेसं । दिट्ठमणुक्खित्तमुहं एसो मग्गो कुलबहणं ।। (गाथासप्तशती ६-२५) जेण विणा ण जिविज्ज्इ अणुणिज्जइ सो कयावराहो वि। पत्त वि णयर-दाहे भण कस्स ण वल्लहो अग्गी ॥ (गाथासप्तशती २-६३) असणेण पेम्म अवेइ अइदसणेण वि अवेइ । पिसुण-जणजम्पिएण वि अवेइ एमेव वि अवेइ ॥ (गाथासप्तशती १-८१) अईसणेण महिलाअणस्स अइदंसणेण णीअस्स । मुक्खस्स पिसुणजणजम्पिएण एमेव वि खलस्स ॥ (गाथासप्तशती १-८२) अणथोवं वणथोवं अग्गीथोवं कसायथोवं च ।
ण हु थोवं मंतव्वं थोवं पि बहुयर होइ। (आवश्यक नियुक्ति) एवं विसिसुभासिआणं भंडाआरं पाइय-भासा भासाविण्णाणाणसंधाणे ।
१.
अवनतमुख: २. सशूको
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Ramane
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