________________ [वौ] [सि] [[] [प्तये] 5. र्या गल्हा तयो पुत्रौ मामेधर्मदेवो / तेन विशिष्टतर पुन्यावाप्तौ निज [शां] 6. कम्म क्षयार्थं च पंचमहाकल्याणोपेतं देवश्री सांतिकुंथअरनाथ रत्न / [शं 7. त्रयं प्रतिष्ठापित तथाऽहर्निसं पादौ प्रणमत्युत्तमांगेन भक्त्याः (त्या)। * // उपर्युक्त लेखोंके अलावा अन्य कई लेख पचराईमें उपलब्ध हैं जिनमें देशीगणके पंडिताचार्य श्री श्रतकीतिके शिष्य पंडिताचार्य श्री वीरचन्द्रके शिष्य आचार्य शभनन्दि और उनके शिष्य श्री लीलचन्द्रसूरि आदिके उल्लेख मिलते हैं। - 351 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org