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गूडरका मूर्तिलेख
गूडर खनियाधानासे दक्षिण में लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित छोटा-सा गाँव है । यहाँके आधुनिक जैन मन्दिरकी विपरीत दिशामें एक खेतमें तीन विशाल तीर्थकर मूर्तियाँ स्थित हैं; जो शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथकी हैं। इनमें सबसे बड़ी प्रतिमा लगभग नौ फुट ऊँची है । इस प्रतिमाकी चरणचौकी पर विक्रम संवत् १२०६ का लेख उत्कीर्ण है । लेखकी लम्बाई ३४ सें०मी० एवं चौड़ाई २१ सें०मी० है । सात पंक्तियोंका यह लेख नागरी लिपि एवं संस्कृत भाषामें है । लेखके प्रारम्भमें श्री शान्तिनाथकी स्तुति की गयी है । आगे बताया गया है कि विक्रम सं० १२०६ में आषाढ़ बदि नवमी बुधवारको, लम्बकञ्चुक अन्वयके माम और धर्मदेवके पिता रत्नेने पञ्चमहाकल्याणक महोत्सवका आयोजन कर शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ और अरनाथ (रत्नत्रय) की प्रतिमाओंकी प्रतिष्ठा कराई और वे प्रतिदिन उनकी भक्तिपूर्वक पूजा करते थे। इन मूर्तियोंकी प्रतिष्ठा कर्मोंके क्षय हेतु कराई गयी थी । रत्नेकी पत्नीका नाम गल्हा था । रत्नेके पिता सुपट थे, वे मुनियोंके सेवक थे, सम्यक्त्व प्राप्त थे, तथा चतुविध दान किया करते थे । सूपटके पिताका नाम गुणचन्द्र था और वे लम्बकञ्चुक ( आधुनिक लमेचू ) अन्वयके थे। इस लेखका मूलपाठ निम्न प्रकार है:
हिराबार
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दद्वय सिवत उडीयाषाढ वदनमात्रीको साधुगु पर्व इतत्सुतः साधुस पर्ज नमुना प्रागतात मागास म्ह वाकाथन विवदान चिंतामणि सनम तिव पत् तस्यस्मा रागला. योखामा मदवा निवारा या वाताव कपक याविव वैमहाकल्याण नंदे वत्री सैनिकंत प्रस्ताव रत निज्ञापितवार सिपापमत्यागनम वज
(श्रीं) (शां) १. - - ॥ जीयात्स्रीसांति:
चित्र २. गूडरका लेख
मूलपाठ
-- पस्स घातघातकः ।-- • दुतिर [ब] [बु] [ब]
२. पदद्वयः । संवत १२०६ ।। आषाढ़ वदि नवम्यां वृधे । श्रीमल्लं व कंचुकान्वय
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३. साधुणचंद्र तत्सुतः साधुतः साधुसूपट जिनमुनिपादप्रणतोतमांगः । सम्यकत्वर[ती] [ar]
४. त्नाकरः चतुर्विधदानचितामणिस्तत्पुत्र साधु रत्ने सतित्व व्रतोपेत तस्य भा
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