SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4 / विशिष्ट निबन्ध : 371 कुसग्गे जह ओसबिंदुए थोवं चिट्ठइ लम्बमाणए / एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम मा पमायए / जैसे घासकी नोकपर पड़ी हुई ओसकी बूंद थोड़े ही समय ठहरती है ऐसे ही मनुष्योंका जीवन है न जाने कब ढलक जाय। गौतम, क्षणभर भी प्रमाद न कर। परिजरइ ते सरीरयं केसा पंडुरमा हवंति ते। से सव्वबले य हायइ समयं गोयम मा पमायए / तेरा शरीर जीर्ण होता जाता है / बाल पक गये हैं / सारी शक्ति धीरे-धीरे विलीम होती जा रही है / गौतम, क्षण भर भी प्रमाद न कर / "तिण्णोसि अण्णवं महं किह पुण चिट्ठसि तीरमागओ। अभितुर पारं गमित्तए समयं गोयम मा पमायए॥" गौतम, तू सारा भव समुद तैर चुका / अब किनारेपर आकर क्यों हिम्मत हारता है-एक आखिरी छलांग लगाओ / गौतम, क्षण भर भी प्रमाद नहीं करो। यहो भगवान् की पुण्य देशना है "णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स" / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211285
Book TitleNischaynay Sarvagyata aur Adhyatma Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZ_Mahendrakumar_Jain_Nyayacharya_Smruti_Granth_012005.pdf
Publication Year
Total Pages12
LanguageHindi
ClassificationArticle & Spiritual
File Size940 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy