________________ नियुक्ति साहित्य : एक पुनर्चिन्तन जण सावगाण खिसण, समियक्खण माइठाण लेवेण। अट्ठावीसो य दुवे पंचेव सया उ चोयाला।। सावय पयत्तकरणं, अविणय लोए चलण धोए।। - आवश्यकनियुक्ति, गाथा 81-82 पडिलाभिय वच्चंता, निव्वुड निइकूलमिलण समियाओ। 52. रहवीरपुरं नयरं दीवगमुज्जाण अज्जकण्हे अ। विम्हिय पंच सया तावसाण पव्वज्ज साहा य।। सिवभूइस्सुवहिमि पुच्छा थोराण कहणा य।। ---पिण्डनियुक्ति, गाथा 503-505 / - उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 178 37. (अ) वही, गाथा 505 53. स्वयं चतुर्दशपूर्वित्वेऽपि यच्चतुर्दशपू[पादानं तत् तेषामपि (ब) नन्दीसूत्र स्थविरावली गाथा, 36 षट्स्थानपतितत्वेन शेषमाहात्म्यस्थापनपरमदुष्टमेव, भाष्यगाथा वा (स) मथुरा के अभिलेखों में इस शाखा का उल्लेख ब्रह्मदासिक शाखा द्वारगाथाद्वयादारभ्य लक्ष्यन्त इति प्रेर्यानवकाश एवेति।। के रूप में मिलता है। -उत्तराध्ययन टीका, शान्त्याचार्य, गाथा 233 38. उज्जेणी कालखमणा सागरखमणा सुवण्णभूमीए। 54. एगभविए य बद्धाउए य अभिमुहियनामगोए य। इंदो आउयसेसं, पुच्छइ सादिव्वकरणं च।। एते तिन्निवि देसा दव्वंमि य पांडरीयस्स।। - उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 119 / - सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा 146 39. अरहते वंदित्ता चउदसपुव्वी तहेव दसपुव्वी। 55. ये चादेशाः यथा—आर्यमनाचार्यस्त्रिविधं शङ्खमिच्छति- एकभविकं बद्धायुष्कमभिमुखनामगोत्रं च, आर्यसमुद्रो द्विविधम्– बद्धायुष्कमएक्कारसंगसुत्तत्थधारए सव्वसाहू य।। - ओघनियुक्ति, गाथा 1 / भिमुखनामगोत्रं च, आर्यसुहस्ती एकम्- अभिमुखनाम गोत्रमिति; 40. श्रीमती ओघनियुक्ति, संपादक- श्रीमद्विजयसूरीश्वर, प्रकाशन- जैन - बृहत्कल्पसूत्रम्, भाष्य भाग१, गाथा 144 ग्रन्थमाला, गोपीपुरा, सूरत, पृ० 3-4 56. वही, षष्ठविभाग, पृ० सं. 15-17 / 41. जेणुद्धरिया विज्जा आगासगमा महापरिन्नाओ। 57. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 1252-1260 / वंदामि अज्जवइरं अपच्छिमो जो सुअहराणं।। 58. वही, गाथा 85 / - आवश्यकनियुक्ति गाथा, 769 59. जत्थ य जो पण्णवओ कस्सवि साहइ दिसासु य णिमित्तं। 59. जत्थ य जा पण्णवआ कस्साव साहइ दिसासु या 42. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 763-774 / जत्तोमुहो य ढाई सा पुव्वा पच्छवो अवरा।। - आचारांगनियुक्ति, गाथा 51 43. अपहुत्तपुहुत्ताइं निद्दिसिउं एत्य होइ अहिगारो। चरणकरणाणुओगेण तस्स दारा इमे हुंति।। 60. सप्ताश्विवेदसंख्य, शककालमपास्य चैत्रशुक्लादौ। -दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा 4 अर्धास्तमिते भानौ, यवनपुरे सौम्यदिवसाये।। 44. ओहेण उ निज्जुत्तिं वुच्छं चरणकरणाणुओगाओ। - पंचसिद्धान्तिका, उद्धृत बृहत्कल्पसूत्रम्, भाष्य षष्ठविभाग, प्रस्तावना, पृ० 17 अप्पक्खरं महत्थं अणुग्गहत्थं सुविहियाणं।। -ओघनियुक्ति, गाथा 2 61. बृहत्कल्पसूत्रम्, षष्ठविभाग, प्रस्तावना, पृ० 18 45. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 778-783 / 62. गोविंदो नाम भिक्खू... 46. उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 164-178 / पच्छा तेण एगिदियजीवसाहणं गोविंदनिज्जुत्ती कया।। एस नाणतेणो।। 47. एगभविए य बद्धाउए य अभिमुहियनामगोए य। -निशीथचूर्णि, भाग 3, उद्देशक 11, सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा, पृ० 260 / एते तित्रिवि देसा दव्वंमि य पोंडरीयस्स।। 63. (अ) गोविंदाणं पि नमो, अणुओगे विउलधारणिंदाणं। -सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा 146 / णिच्चं खंतिदयाणं परूवणे दुल्लभिंदाणं।। 48. उत्तराध्ययन टीका शान्त्याचार्य, उद्धृत बृहत्कल्पसूत्रम् भाष्य, षष्ठ - नन्दीसूत्र, गाथा 81 विभाग प्रस्तावना, पृ० 12 / 49. वही, पृ० 2 / (ब) आर्य स्कंदिल 50. बृहत्कल्पसूत्रम्, भाष्य षष्ठविभाग, आत्मानन्द जैन सभा, भावनगर, आर्य हिमवंत पृ०, 11 / 51. सावत्थी उसभपर सेयविया मिहिल उल्लुगातीरं। आर्य नागार्जुन पुदिमंतरंजि दसपुर रहवीरपुरं च नगराई।। चोद्दस सोलस बासा चोद्दसवीसुत्तरा य दोण्णि सथा। आर्य गोविन्द Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org