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________________ नारी-शिक्षा का लक्ष्य एवं स्वरूप 21 अर्थ है पुरुष को शिक्षित करना / जैसा कि वेदों में माता के अनेकों रूपों का दिग्दर्शन कराया गया है वह हर रूप में पुरुष की प्रेरणा है, शिक्षिका है।। अलग-अलग क्षेत्रों के लिये शिक्षा में परिवेश की आवश्यकता के अनुसार पाठ्यक्रम तो होने चाहिये पर शिक्षा का मूल लक्ष्य तो यही होना चाहिये-अपने को परिस्थितियों के अनुसार ढालने की क्षमता देना / यह क्षमता उसी में आयेगी जिसमें नैतिक बल होगा, चारित्रिक दृढ़ता होगी। नैतिकता और सच्चरित्रता के मानदंड भी समयसमय पर परिवर्तित होते रहते हैं पर उनकी मूल आत्मा आज भी वही है जो वैदिक युग में थी। शिक्षा के क्षेत्र में सबसे महत्त्वपूर्ण बात है अभिरुचि और आवश्यकता की। नारी हो या पुरुष जिस विषय या क्षेत्र में उसकी अभिरुचि होगी, गहन अध्ययन की आकांक्षा और उत्साह होगा, उसके लिये वही उपयुक्त क्षेत्र है। आवश्यकताओं के आधार पर भी शिक्षा के स्वरूप का और लक्ष्य का निर्धारण समीचीन है। आज नारी की शिक्षा के लिये शासन और समाज दोनों ही उदार हैं पर कुछ समस्यायें आज भी नारी की शिक्षण-प्रगति के आगे प्रश्न चिह्न लगा देती हैं / उनमें सबसे भीषण है-दहेज की समस्या। माता-पिता इस डर से बेटी को नहीं पढ़ाते कि फिर उसके अनुरूप वर ढूंढने में कठिनाई होगी, अधिक दहेज जुटाना पड़ेगा उसके लिये / पर धीरे-धीरे लोग जागरूक हो रहे हैं / अब पुत्री को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाकर पति-गृह में भेजने की ओर लोगों का झुकाव बढ़ रहा है / अब ऐसे लोगों का प्रतिशत घटता जा रहा है जो लड़कियों की शिक्षा-दीक्षा का निर्लज्जता और स्वेच्छाचारिता के भय से विरोध करते थे। पर आज आवश्यकता है नारी-वर्ग में आत्मविश्वास की जो समाज की आवश्यकताओं को पूरी कर सके। माध्यमिक शिक्षा में कई वर्ग हैं। पाठ्यक्रम के साहित्यिक, विज्ञान, प्राविधिक, कृषि आदि / कुछ विषय या वर्ग ऐसे हैं जिन्हें लेने के लिये अभी भी बालिकायें संकोच करती हैं, अपने लिये अनुपयुक्त समझती हैं, उदाहरण के लिये -कृषि / अविभावकों और अध्यापकों का यह कर्तव्य है कि वे उनकी झिझक दूर करके उन्हें प्रोत्साहित करें। यदि नारी डाक्टर, इन्जीनियर, वैज्ञानिक बन सकती है तो क्या वह वैज्ञानिक ढंग से खती करवाने में सक्षम खेतिहर नहीं बन सकती? उसी प्रकार सैनिक शिक्षा के प्रति हमारा दृष्टिकोण उदार नहीं है / इतिहास साक्षी है कि नारी ने आवश्यकता पर पड़ने पर युद्धभूमि में पुरुषों के छक्के छुड़ा दिये। अत: यदि किसी नारी की रुचि इस क्षेत्र में हो तो उसे प्रोत्साहित करें / थल सेना, जल सेना, वायु सेना तीनों में ही नारी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। वैसे भी नारी को अपनी आत्म-रक्षा के लिये सबल बनना आवश्यक है। मातृत्व की शिक्षा-नारी शिक्षा का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग होना चाहिये / यह गुण प्रकृति ने केवल नारी को दिया है। आज आवश्यकता है नारी अपने में मातृत्व गुणों का विकास करे तभी वह समाज को नई दिशा दे सकती है। धर्म समाज की रीढ़ है / धर्म का अभिप्राय संकीर्ण सांप्रदायिक मनोवृत्ति से नहीं है। धर्म बहुत ही व्यापक शब्द है / अत: शिक्षा में धर्म की मूल आत्मा को महत्त्व मिलना आवश्यक है। तभी समाज अनुशासित होगा, तभी चारित्रिक बल बढ़ेगा और नारी वैदिक नारी की गरिमा से युक्त होगी। आज की आवश्यकताओं और परिवेश के अनुरूप ही शिक्षा स्वरूप और लक्ष्य निर्धारित करना अभिप्रेत है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211265
Book TitleNari Shiksha ka Lakshya evam Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyabindusinh
PublisherZ_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
Publication Year1982
Total Pages5
LanguageHindi
ClassificationArticle & Education
File Size428 KB
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