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________________ काजी अञ्जुम सैफी इस समस्त विवेचन से नाट्यदर्पण पर अभिवभारती का अत्यधिक प्रभाव है यह स्वतः स्पष्ट हो जाता है। वस्तुतः यदि नाट्यदर्पण के अभिनवभारती से प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित सम्पूर्ण अंशों को उसमे पृथक कर दिया जाये तो उसका मूल स्वरूप ही अस्त-व्यस्त हो जायेगा। यह सब उस समय और भी विचित्र प्रतीत होता है, जल नाट्यदर्पणकार स्वयं काव्यापहार की कटु शब्दों में करते हैं।' काज़ी पाड़ा, बिजनौर (उ० प्र०) 246701 ग्रन्थ-सूची 1. नाट्यदर्पण (ना० द०)-रामचन्द्र-गुणचन्द्र, ओरियण्टल इन्स्टीट्यूट, बड़ौदा, 1959 / 2. नाट्यशास्त्र (ना० शा०) भरत, भाग-१ / ओरियण्टल इन्स्टीट्यूट, बड़ौदा, द्वितीय संस्करण 3. नाट्यशास्त्र-भरत, भाग-२, ओरिएण्टल इन्स्टीट्यूट, बड़ौदा, 1934 / 4. नाट्यशास्त्र-भरत, भाग-३, ओरिएण्टल इन्स्टीट्यूट, बड़ौदा 1954 / 5. नाट्यशास्त्र-भरत, भाग-४, ओरिएण्टल इन्स्टीट्यूट, बड़ौदा 1964 / 6. हिन्दी नाट्यर्पण-रामचन्द्र-गुणचन्द्र, हिन्दी-विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, प्रथम संस्करण 1961 / 7. दि नाट्यदर्पण ऑव रामचन्द्र एण्ड गुणचन्द्र-ए क्रिटिकल स्टडो-त्रिवेदी के० एच०, इन्स्टीट्यूट ऑव इण्डोलॉजी, अहमदाबाद, फर्स्ट एडीशन, 1966 / 1. अकवित्वं परस्तावत् कलङ्कः पाठशालिनाम् / अन्यकाव्यैः कवित्वं तु कलङ्कस्यापि चूलिका / / ना० द० प्रारम्भिक श्लोक सं० 11 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211251
Book TitleNatyadarpan par Abhinav Bharati ka Prabhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaji Anjum Saifi
PublisherZ_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf
Publication Year1991
Total Pages19
LanguageHindi
ClassificationArticle & Kavya
File Size2 MB
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