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________________ नाट्यदर्पण पर अभिनवभारती का प्रभाव १०७. एते च त्रयोऽङ्गजाः परस्परसमुत्थिता अपि भवन्ति । तथा हि कुमारीशरीरे प्रौढतम कुमारगतभाव- हाव-हेला-दर्शनश्रवणाभ्यां भावादयोऽनुरूपा विरूपाश्च भवन्ति । पृ० १८२ १०८. रागः प्रियतमं प्रत्येव बहुमानः । मदो मद्यकृतश्चित्तोल्लासः । हर्षः सौभाग्यगर्वः । अन्यथा वक्तव्येऽन्यथा वचनम्, हस्तेनादातव्ये पादेनादानम्, कटीयोग्यस्य कण्ठे निवेशन- मित्यादिकः । पृ० १८३ १०९. प्रियतमप्रीत्यतिशयेन । पृ० १८३ ११०. रूपलावण्यादीनां च पुरुषेणोपभुज्यमानानां यदौज्ज्वल्यं छाया विशेषः । पृ० १८४ १. भावानां साध्यफलोचितानां रतिहर्षोत्सवादीनां याचनं प्रार्थना । पृ० ७४ २. चौर-नृपारि-नायकादिभ्यो भयमुद्वेगः । पूर्वोक्त पृ० ७६. Jain Education International १३५ प्रतिपद्यते तदा तज्जनितो देहविकारविशेषो हेला । पूर्वोक्त भाग - ३ पृ० १५७. अप्येते परस्परसमुत्थिता भवन्ति । तथा हि कुमारीशरीरे प्रोढ़तम कुमार्यंन्तरगतहेलावलोकने पूर्वोक्त पृ० १५५. इसके अतिक्ति पताकास्थानक, कार्यावस्था और अर्थप्रकृतियों को चेतन एवं अचेतन रूप में Shant व्याख्या तथा अन्य विविध स्थल भी अभिनवभारती से वैचारिक दृष्टि से प्रभावित तथा अनुप्राणित प्रतीत होते हैं । यह सम्भावना भी सत्य प्रतीत होती है कि रामचन्द्र - गुणचन्द्र द्वारा कथित 'नाट्यदर्पण -विवृत्ति' नाम भी अविनवगुप्त के 'नाट्य वेद-विवृत्ति' से प्रेरित रहा होगा । इन समस्त तथ्यों को पृष्ठभूमि में भी यह कथन तो अनुचित ही होगा कि नाट्यदर्पण में अभिनवभारती का अन्धानुकरण किया गया है । वस्तुतः रामचन्द्र- गुणचन्द्र ने अवसर के अनुरूप अभिनवगुप्त के मन्तव्य की आलोचना तथा उनमें संशोधन एवं परिवर्धन भी किया है, परन्तु प्रस्तुत शोध-पत्र की सीमाओं को दृष्टिगत रखते हुए हम यहाँ नाट्यदर्पण के एतत्सम्बद्ध स्थलों का उल्लेख उचित नहीं समझते हैं । वचनेऽन्यथावक्तव्येऽन्यथाभाषणम्, हस्तेनादातव्ये, पादेनादानम् रसनायाः कण्ठे न्यासः इत्यादि । मद्येन कृतो रागः प्रियतमं प्रत्येव बहुमानो हर्षः । सौभाग्यगर्यो यथा । पूर्वोक्त पृ० १६०. नाट्यदर्पण की विवृत्ति में २ स्थल ऐसे भी प्राप्त होते हैं जिन पर नाट्यशास्त्र और अभिनव भारती का संयुक्त प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । यहीं उनका प्रदर्शन कर देना तो अनङ्ग-कीर्तन ज्ञात नहीं होता है प्रियतमगतैः प्रीत्या तं प्रति बहुमानातिशयेन । पूर्वोक्त पृ० १५९. तान्येव रूपादीनि पुरुषेणोपभुज्यमानानि छायान्तरं श्रयन्ति । पूर्वोक्त पृ० १६२ । एतत्साध्यफलोचितभावलक्षणम् । ना० शा० भाग – ३ | पृ० ५० । रतिहर्षोत्सवानां तु प्रार्थना प्रार्थनाभवेत् । ८६।१९ ना० शा०. अरिशब्दान्नायकादि । अभि० भा० (ना० शा० भाग - ३) पृ० ५१; भय नृपारिदस्यूत्थमुद्वेगः परिकीर्तितः । ८८।१९ ना० शा० । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211251
Book TitleNatyadarpan par Abhinav Bharati ka Prabhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKaji Anjum Saifi
PublisherZ_Aspect_of_Jainology_Part_3_Pundit_Dalsukh_Malvaniya_012017.pdf
Publication Year1991
Total Pages19
LanguageHindi
ClassificationArticle & Kavya
File Size2 MB
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