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________________ श्रीजिनचन्द्रसूरीशा ललाटमणिधारकाः / नतनचैत्यचैत्यानि, जिनधर्मप्रभावनाम् / शासनोद्योतका आसन् महा प्रभावशालिनः / / 186 / / विधायमहती सेवा कृताप्तशासनस्य च // 165 / / अतः खरतरे गच्छे चतुर्थ पट्टधा रिणाम् / / साम्प्रतं पूर्वदेशीय-जैन तीर्थानि सन्ति यत् / तन्नाम स्थापनायाश्च चलि तारमात्परम्पर। / / 187 // येषां द्रव्यात्मभोगस्य सुपरिणतिरस्ति हि / / 166 / महतीयाण जातिश्चास्थापि श्रीचन्द्रसूरिणा। अस्या जाते: समीचीना संख्यात्रिशतवत्स रात् / प्रतिबोध्योपदेशेन श्रीमदार्हतशासने // 188 / / प्रागभूत् है यमाना सा, नामशेषाऽधुनाऽभवन् / / 167 / ' भाषायां महतीयाण मंत्रिदलीयः संस्कृते / श्रीनाहटागोत्रिभवागरेन्दुसंदृब्धभ षामय पुस्तकाच्च / इत्युलेखः समेत्यस्या जातेर्बाहुल्यतः पुन / / 186 // दृब्धं मया श्रीजिनचन्द्रसूरेरिदं चरित्रं मणिधारकस्य संस्कृतादिशिलालेख-कथनस्यानुसारतः। ||168 / अस्या उत्पत्तिरत्यन्त-प्राचीनास्ति च तद्यया // 16 // इदं समाप्त सुगुरु प्रसादात्संवद्गजाकाङ्कशशाङ्कवर्षे / श्रीऋषभप्रभोः पुत्र-भरतचक्रवत्तिनः / वैशाख शुवलस्य तृतीयकायांतिथौ च भौमे परिमोहम ह्याम् / 166 श्रीदलमन्त्र्यभून्मुख्यो मन्त्रिगुणसमन्वितः // 16 // शुद्धे गणे खरतरे मुनिमोहनाख्यमन्त्रिदलीयनाम्ना तत्सन्ततिरप्यभूज्जने / तच्छिष्यराजमुनित जिनरत्नसूरेः / प्रसिद्धा मन्त्रिशब्दस्यापद्मशमहताऽजनि // 162 // ज्ञान क्रियागुणभृतो लघुबन्धनोपाअतोऽस्य वंशजानां हि जातिनामापि भूतले। ध्यायेन लब्धिमुनिना र चितं चरित्रम् / / 2. 0 / महत्तीयाण इत्यासीदुक्त शब्दानसारतः / / 16 / / महेन्द्रसूर्यपर्तिशुद्धदीक्षः श्रीमोहनाख्यः सुमुनिस्ततश्च / कियद्भिर्व्यक्तिभिर्यस्य वंशपरम्परागतैः श्रीमद्यशःसू रिवरस्ततः श्री जिनद्विसूरी शरिष्ठ ज्ये पूर्वदेशीयतीर्थानां जीर्णोद्धाराणि भूरिशः // 164 / / 201 // युग्मा। // इति श्रीमणिधारी दादा श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वर चरित्रं समाप्तम् / / संवत् 1968 वैशाखशुक्ल तृतीयायां मङ्गले स्थानानगरे ल ब्धिमुनिना ऊखीयं प्रतिः इति / [ उपर्युक्त मणिधारी श्री जिन चन्द्रसूरिजी का जीवन चरित्र हमारी 'मणिधारी जिनचन्द्रसूरि' पुस्तक के पद्यबद्ध रूपमें है / इससे 28 वर्ष पूर्व पूज्य उपाध्याय | लब्धिमुनिजी महाराज ने सं० 1650 में श्रीरत्नमुनिजी महाराज के सहाय्य से खरतर गच्छ पट्टावली संस्कृत में 1745 श्लोकों में निर्माण की थी। प्रस्तुत पट्टावली की 74 पत्र व 2075 ग्रंथ संख्या वाली उपाध्यायजी महाराज के स्वयं महीदपुर में लिखी हुई प्रति हमारे 'अभय जैन ग्रन्थालय' बीकानेर में है जिसमें मणिधारी जी का जीवनवृत्त श्लोक 997 से पद्यांक 1865 पर्यन्त है। प्रस्तुत चरित्र में मणिधारीजी के प्रतिबोधित जाति-गोत्रों का इतिहास भी है। हम अपने 'मणिधारी श्री जिन चन्द्रसरि' के द्वितीय संस्करण में महाजन वंश मुक्तावली और जैन सम्प्रदाय शिक्षा के आधार से इस विषय में प्रकाशित कर चुके हैं अतः पट्टावली के श्लोक यहां नहीं दिये जा रहे हैं / -सम्पादक] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211247
Book TitleNarmani Mandit Bhalsthal Yuga Pradhan Jinchandrasuri Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal Nahta
PublisherZ_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf
Publication Year1971
Total Pages8
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size716 KB
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