Book Title: Narmani Mandit Bhalsthal Yuga Pradhan Jinchandrasuri Charitam
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ उ० श्रीलब्धिमुनिविरचितंम् नरमणि मण्डित - भालस्थल युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि चरितम् [खरतरगच्छ में युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरिजी, उनके पट्टधर मणिधारी श्रीजिनचंद्रसूरिजी प्रगटप्रभावी श्री जिनकुशलसूरिजी और अकबर - प्रतिबोधक श्री जिनचन्द्रसूरिजी ये चारों आचार्य दादाजी के नाम से विख्यात हैं, हमने जब साहित्य को शोध महोपाध्याय कविवर समयसुंदर संबन्धी विशेष जानकारी प्राप्त करने लिए प्रारंभ को तो उनके दादागुरू चतुर्थ दादा साहब सम्बन्धी विपुल समग्री हमारे सामने आई | हमने शताधिक ग्रन्थों के आधार से उनका स्वतन्त्र विस्तृत जीवनचरित्र 'युगप्रधान श्रीजिनचन्द्र सूरि' सं० १६६२ में प्रकाशित किया और उसके बाद क्रमशः दादा श्रीजिनकुशलसूरि, मणिधारी जिनचन्द्रसूरि के चरित्र प्रकाशत किये। जब वे परमपूज्य आशु कवि उपाध्याय लब्धिमुनिजी को भेजे गये तो उन्होंने उनके आधार से चार संस्कृत काव्य निर्माण कर दिये। अकबर प्रतिबोधक जिनचन्द्रसूरि चरित काव्य ६ सर्गों में १२१२ पद्यों का है । सं० १६६२ के बैशाख सुदि ७ को भुजनगर में इसकी रचना हुई है। इसके बाद श्री जिनकुशलसूरि चरित्र ६३३ श्लोकों में सं० १९६६ मार्गशीर्ष शु १५ अहमदाबाद में पूर्ण किया । तदनंतर मणिवारी जिनचन्द्रसूरि चरित्र सं० १९६८ के अक्षयतृतीया का बंबई में रवा | अंतिम श्री जिन दत्तसूरि चरित्र ४६८ श्लोकों में सं० २००५ बैशाख सुदि ५ को जयपुर में पूर्ण किया । इन चारों संस्कृत काव्यों में से अकबर- प्रतिबोधक श्री जिनचन्द्रसूरि चरित्र दादागुरु के अनन्य भक्त को अभयचंदजी व श्री लक्ष्मीचन्दजी सेठ द्वारा प्रकाशित हो गया है। अभी अष्टम शताब्दी के प्रसंग से मणिधारीजी का चरित्र भी प्रकाशित करना अत्यावश्यक समझ कर उसे यहां दिया जा रहा है । -संपादक ] प्रणम्य श्रीमहावीरं चरितं लिख्यते मया । मणिभृज्जिनचन्द्राख्य सूरीणां पुण्यशालिनाम् ॥ १ ॥ जैन समाजे विख्याता दादेति नामधारकाः । श्रीजिनदत्तसूरीशाः श्रोजिनचन्द्रसूरयः ॥ २ ॥ जिनकुशलसूरीशाः श्रीजिनचन्द्रसूरयः । श्रीखरतरगच्छस्य चतुर्व्वेतेषु सूरिषु ॥ ३ ॥ श्रीजिनदत्तसूरीणां समागच्छत्यनन्तरम् । श्रीजिनचन्द्रसूरीणामभिवा मणिवारिणाम् ॥४॥ त्रिभिर्विशेषकम् ते महाप्रतिभाशालि-विद्वांसः सूरयोऽभवन् । शुद्धज्ञान क्रियायुक्ता जिनधर्मप्रभावकाः || ५ || Jain Education International एभिः सम्प्राप्य षड्विंशत्यब्दाल्पायुरकारयत् । कार्यं तदस्ति चाश्चर्यजनकं गौरवान्वितम् ॥ ६ ॥ अज्ञायि गुरुवर्येण श्रीजिनदत्तसूरिणा । प्रतिभादिपरीक्षातः स च महाप्रभावकः ॥ ७ ॥ दृश्यन्ते दत्तसूरीणां लोकोत्तर प्रभावकाः । श्रीजिनचन्द्रसूरीश जीवने चांकिता गुणाः ॥ ८ ॥ मणिधारी महान् व्यक्ति रसाधारणसज्जनः । अभूदतोऽस्य संक्षिप्त परिचयोऽत्र दीयते ॥ ६ ॥ जेसलमेरुदुर्गस्य सौष्ठव राज्यवर्तिनि । श्रीविक्रमपुर ङ्ग चैत्यश्राद्धजनाकुले ॥ १० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8