________________ धर्म और दर्शन के क्षेत्र में हरिभद्र की सहिष्णुता / 127 अर्थात् सदाशिव, परब्रह्म, सिद्धात्मा, तथागत आदि नामों में केवल शब्द भेद है। उनका अर्थ तो एक ही है। वस्तुत: यह नामों का विवाद तभी तक रहता है जब तक हम उस आध्यात्मिक सत्ता की अनुभूति नहीं कर पाते हैं। व्यक्ति जब वीतराग, वीततृष्ण या अनासक्ति की भूमिका का स्पर्श करता है तब उसके सामने नामों का यह विवाद निरर्थक हो जाता है / वस्तुतः आराध्य के नामों की भिन्नता भाषागत भिन्नता है स्वरूपगत भिन्नता नहीं। वस्तुतः जो इन नामों के विवादों में उलझता है, वह अनुभूति से वंचित हो जाता है। वे कहते हैं कि जो उस परम तत्त्व की अनुभूति कर लेता है उसके लिए यह शब्द-गत समस्त विवाद निरर्थक हो जाते हैं / इस प्रकार हम देखते हैं कि एक उदारचेता, समन्वयशील और सत्यनिष्ठ प्राचार्यों में हरिभद्र के समतुल्य किसी अन्य प्राचार्य को खोज पाना कठिन है। अपनी इन विशेषताओं के कारण भारतीय दार्शनिकों के इतिहास में वे अद्वितीय और अनुपम हैं। -निदेशक पावनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान आई० टी० आई० रोड, वाराणसी-५ धम्मो दीयो संसार समुद्र में म ही दीय है। www.jainelibrary.erg Jain Education International For Private & Personal Use Only