________________ सिरि पासणाह णिम्मलु चरित्तु, सयलामल-गुण रयणोय दित्तु / पणवीस सयइं गंथहो पमाण, जाणिज्जहिं पणवीसहिं समाणु / जा चन्द दिवायर महिह रसायर ता बुहयणहिं पढिज्जउ / भवियहिं भाविज्जउ गुणहिं थुणिज्जउ वरलेयहि लिहिज्जउ / / इय पासचरित्तं रइयं, बुह-सिरिहरेण गुणभरियं / अणुमण्णियं मणुज्जं णट्टल-णामेण भव्वेण / / पुव्व-भवंतर-कहणो पास-जिणिदस्स चारु-निव्वाणो। जिण-पियर-दिक्ख-गहणो बारहमो संधी परिसम्मत्तो / / अहो जण णिच्चलु चित्त करेवि, भिसं विसएसु भमंतु धरेवि / खणेक्क पयंपिउ मज्झु सुणेहु, कु भावई सव्वई होतह णेहु / इहत्थि पसिद्धउ ढिल्लिहिं इक्क, णरुत्त मुणं अवइण्णउँ सक्कु / समक्खमि तुम्हहँ तासु गुणाई, सुरासुर-राय मणोहरणाइँ / ससंक सुहा समकित्तिह धामु, सुरायले किण्णर गाइय णामु। मणोहर-माणिणि-रंजण कामु, महामहिमालउ लोयहँ वामु / जिणेसर-पाय-सरोय-दुरेहु, विसुद्ध मणोगइ जित्तइ सुरेहु / सया गुरु भत्तु गिरिदु व धीरु, सुही-सुहओ जलहिव्व गहीरु / अदुज्जणु सज्जण सुक्ख-पयासु, वियाणिय मागह लोय पयासु / असेसह सज्जण मज्झि मणुज्ज, नरिंदहँ चित्ति पयासिय चोज्जु / महाम इवंतहँ भावइ तेम, सरोयणराहं रसायणु जेम / सवंस णहंगण भासण-सूरु, सबंधव-वग्ग मणिच्छिय पूरु / सुहोह पयासणु धम्मुय मुत्तु, वियाणिय जिणवर आयमसुत्तु / दयालय वट्टण जीवण वाहु, खलाणण चंद पयासण राहु / पिया अइ वल्लह वालिहे णाहु वहुगुणगणजुत्तहो जिणपयभत्तहो जो भासइ गुण नट्टलहो / सो पयहिं णहंगणु रमिय वरंगणु लंघइ सिरिहर हय खलहो / / पंचाणुव्वव धरणु स सयल सुअणई सुहकारणु / जिणमय पह संचरणु विसम विसयासा वरणु // वच्छल्ल विहाण पविहाणय वित्थरणु जिण-मुणि-पय-पुज्जाकरणु / अहिणंदउ णट्टल साहु चिरु विवुहयणहँ मण-धण-हरणु / / दाणवंतु तकि दंति धरिय तिरयणि त कि सेणिउं। रूवतुत कि मय तिज य तावणु रइ भाणिउ // अइगहीरु त कि जलहि गरुय लहरिहि हय सुखहु / अइ थिरयरु त कि मेरु वप्प चय रहियउ त कि नहु / / णउ दंति न सेणिउं नउ मयणु ण जलहि मेरु ण पुणु न नहु / सिखितु साहु जेजा तणउं जगि नट्टलु सुपसिद्ध इहु / / अंग-वंग-कालिंग-गउड़-केरल-कण्णाडहं / चोड-दविड-पंचाल-सिंधु-खस-मालव-लाडहं / / जट्ट-भोट्ट-णेवाल-टक्क-कुंकण-मरहट्टहं / भायाणय-हरियाण-मगह-गुज्जर-सोरट्टहं / / इय एवमाइ देसेसु णिरु जो जाणियइ नरिंदर्हि / सो नट्टलु साहु न वण्णियइ कहि सिरिहर कइ विदहि // दहलक्खण जिण-भणिय-धम्म धुर धरणु वियक्खणु / लक्खण उवलक्खिय सरीरु परचित्तु व लक्खणु / / सुहि सज्जण बुहयण विहीउ सीसालंकरियउ। कोह-लोह-मायाहि-माण-भय-मय-परिरहियउ / / गुरुदेव-पियर-पय-भत्तियरु अयरवाल-कुल-सिरि-तिलउ / णंदउ सिरि णट्टलु साहु चिरु कइ सिरिहर गुण-गण-निलउ // गहिर-घोसु नवजलहरुब्व सुर-सेलु व धीरउ। मलभर रहियउ नयलुव्व जलणिहि व गहीरउ // चितिययरु चिंतामणिन्व तरणि व तेइल्लउ / माणिणि-मणहर रइवरुव्व भव्वयण पियल्लउ / / गंडीउ व गुण गण मडियउ परिनिम्महिय अलक्खणु / जो सो वणिय न केउ ण भणु नट्टलु साहु सलक्खणु॥ आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org