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________________ जो धम्म-धुरंधरु उण्णय-कंधरु सुअण-सहावालंकरिउ / अणुदिणु णिच्चलमणु जसु बंधवयणु करइ वयणु णेहावरिउ / जो भव्वभाव पयडण समत्थु, ण कया वि जासु भासिउ णिरत्थु / णाइण्णइ वयणई दुज्जणाह, सम्माणु करइ पर सज्जणाहं / संसग्गु समीहइ उत्तमाहं, जिणधम्म विहाणे णित्तमाहं / णिरु करइ गोठ्ठि सहुं बुयणेहिं, सत्थत्थ-वियारण हिय-मणेहिं / किं बहुणा तुज्झु समासिएण, अप्पउ अप्पेण पसंसिएण / महु वयणु ण चालइ सो कयावि, जं भणमि करइ लहु तं सयावि / तं णिसणिवि सिरिहरु चलिउ तेत्थु, उवविठ्ठउ णट्टलु ठाई जेत्थु / तेणवि तहो आयहो विहिउ माणु, सपणय तंबोलासण समाणु / जं पुव्व जम्मि पविरइउ किंपि, इह विहिवसेण परिणवइ तंपि / खणु एक्क सिणेहें गलिउ जाम, अल्हण णमेण पउत्त ताम / भो णट्टल णिरुवम धरिय कुलक्कम, भणमि किंपि पई परम सुहि / पर समयः परम्मुह अगणिय दुम्मह परियाणिय जिण समय विहि / कारावेवि णाहेयहो णिकेउ, पविइण्णु पंच वणं सुकेउ / पई पुणु पइट्ठ पविरइय जेम, पासहो चरित्त, जइ पुणवि तेम / विरयावहि ता संभवइ सोक्खु, कालंतरेण पुणु कम्ममोक्खु / सिसरयर-विवे णिय जणण णामु, पई होइ चडाविउ चंद-धामु / तुज्झु वि पसरइ जय जसु रसत, दस दिसहि सयल असहण हसंतु। तं णिसुणिवि णट्टलु भणई साहु, सइवाली पिय यम तणउं णाहु / भणु खंड रसायणु सुह यासु, रुच्चइ ण कासु यतणु पयासु / एत्थंतरि सिरिहरु वुत्त तेण, णट्टलु णामेण मणोहरेण / भो तहु महु पयडिय णेहभाउ, तुहं पर महु परियाणिय सहाउ / तुहुं महु जस सरसीरुह सुभाणु, तुहुं महु भावहि णं गुण-णिहाणु / पई होतएण पासहो चरित्तु, आयण्णमि पयडहि पावरित्त / तं णिसुणिवि पिसुणिउं कविवरेण, अणवरउ लद्ध-सरसइ-वरेण / विरयमि गयगावें पविमल भावें तुह वयणे पासहो चरिउ / पर दुज्जण णियरहिं हयगुण पयरहिं घरु पुरु णयरावरु भरिउ / इय सिरिपासचरितं रइयं बुह-सिरिहरेण गुण-भरियं / अणुमणियं मण्णोज्जं णट्टल-णामेण भव्वेण / विजयंत-विमाणाओ वम्मादेवीइ णंदणो जाओ। . कणयप्पहु चविऊणं पढमो संधी परिसमत्तो। राहव साहुहें सम्मत्त-लाहु, संभवउ समिय संसार-दाह / सोढल नामहो सयल वि धरित्ति, धवलंति भमउ अणवरउ कित्ति / / तिण्णि वि भाइय सम्मत्त-जुत्त, जिणभणिय धम्म-विहि करण धुत्त / महिमेरु जलहि ससि सूरु जाम, सहुं तणुरुहेहिं णंदंतु ताम / चउविहु वित्त्थरउ जिणिंद-संघु, परसमय खुद्दवाइहिं दुलंघु / / वित्थरउ सुयजसु भुअणि पिल्लि, तुट्टउ डित्ति संसार-वेल्लि / विक्कम णरिंद सुपसिद्ध कालि, ढिल्ली पट्टणि धण कण विसालि / / सणवासि एयारह सएहि, परिवाडिए वरिसहं परिगएहि / कसणट्ठमीहिं आगहणमासि, रविवारि समाणिउ सिसिर भासि / / जैन इतिहास, कला और संस्कृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211168
Book TitleDellhi ka Aetihasik Jain Sarthwaha Nattal Sahu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundanlal Jain
PublisherZ_Deshbhushanji_Maharaj_Abhinandan_Granth_012045.pdf
Publication Year1987
Total Pages2
LanguageHindi
ClassificationArticle & Biography
File Size514 KB
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