________________ - यतीन्द्रसूरि स्मारक इतिहासउल्लेख 1131 ई. के शिलालेखों में मिलता है। बाद में 1313 आदिनाथ और उनके पुत्र भरत बाहुबली से रहा है। राज्य के ई. तक उसका उल्लेख नहीं है। १४वीं सदी के प्रारंभिक काल में बँटवारे के समय भरत को अयोध्या और बाहुबली को पोदनपुर उसका उल्लेख मिलने लगता है। 1398 ई. में चारुकीर्ति परंपरा का राज्य दिया गया। यह पोदनपुर भारत के उत्तरी भाग में था या में आने वाला व्यक्ति श्रुतकीर्तिदेव का शिष्य था। यह परंपरा दक्षिणापथ के किसी अंचल में, यह विषय विवादग्रस्त है। बाबू 1856 ई. तक चली। बाद में कदाचित् मुनि के स्थान पर कामताप्रसाद जी ने उसे दक्षिणापथ में माना हैदराबाद के आसपास। भट्टारक का समावेश हुआ। 1858 ई. के बाद के शिलालेखों में शायद इसी धारणा से बंबई में वोरवली में पोदनपुर की स्थापना चारुकीर्ति मुनियों का उल्लेख नहीं मिलता। उसी परंपरा में वर्तमान हुई। कतिपय विद्वान उसे अफगानिस्तान में रखते हैं। भट्टारक चारुकीर्ति स्वामीजी दीक्षित हुए हैं। इस प्रकार जैनधर्म दक्षिण भारत में खूब पनपा और उसकी श्रवणबेलगोल इसी परंपरा में आज भी जैन-संस्कृति के कला-सम्पदा अनोखी रही। पुरातत्त्व में उसके जो चिह्न हमें संरक्षण का केन्द्र बना हुआ है। उसका मूल संबंध प्रथम तीर्थंकर मिलते हैं, उनका आलेखन हमने यहाँ संकेत में किया है। శిరంగంగయందురురురురురురుసారంగారరసారం రంగారరసాయరుగారుసారసాదశరువారం Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org