________________ -चतान्द्रसूरि स्मारक ग्रन्या इतिहास - भंडार-वसदि में ईशान्य में जैनमठ है, जिसे मूलतः १२वीं युक्त ग्यारह फणयुक्त पद्मासन मूर्ति संस्थापित है। इसे गंगराज सदी में बनाया गया था, पर उसका 300-400 वर्ष पूर्व नवीनीकरण के भाई हिरि एचिमय्य ने बनवाया था। हुआ है। इस मठ के भीतर के भित्तिचित्र और गर्भगृह की धातु श्रवणबेलगोल के दक्षिण-पश्चिम में एक चौकोर समाधि मूर्तियाँ तथा द्वार-मण्डप की गजाकृतियाँ विशेषतः दृष्टव्य हैं। मण्डप है जो आचार्य नेमिचन्द्र के शिष्य की निषध्या है (1213 जो इनकी संरचना 17-18 वीं सदी में हुई है। ज्वालामालिनी, शारदा ई.)। यहीं एक और निषध्या है, जो चारुकीर्ति की समाधि है और कूष्माण्डिनी देवियों की भी यहाँ कलात्मक मूर्तियां हैं। (1643 ई.)। अक्कन-वसदि-- भण्डार वसदि सेहमसीधे अंत में अक्कन श्रवणबेलगोल से 6 कि.मी. दूर उत्तर में हेलेवेलगोल है, वसदि पहुँचते हैं, यहाँ होयसल शैली में निर्मित गर्भगृह और प्रवेश जिसमें होयसल शैली का एक ध्वस्त जैनमंदिर है। एक अन्य मण्डप निर्मित मिलते हैं। अलंकृत गर्भगृह में पार्श्वनाथ की सप्तफण ग्राम साहल्ली 5 कि.मी. दूर तथा कम्बदहल्ली 18 कि.मी. यक्त मर्ति है, साथ ही मंदिर की प्रभावली में चौबीस तीर्थंकरों की दर है. जहाँ गंगराज परिवार द्वारा निर्मित अनेक कलात्मक जैन - मर्तियाँ और सुखनासि में यक्ष, धरणेन्द्र, यक्षिणी और पद्मावती मंदिर दर्शनीय हैं। की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। इसका निर्माण 1103 ई. में होयसल परिवार श्रवणबेलगोल और उसके परिकर के मंदिरों का इतिहास ने कराया। इस वसदि के घंटाकार स्तम्भ, कीर्तिमुख, शिखर आदि नवीं सदी से प्रारंभ होता है। चन्द्रगिरि पर्वत पर 1125 ई. के की अलंकृत द्राविड शैली की आकर्षक कलाकृतियाँ है। बाद का कोई मंदिर नहीं है पर विन्ध्यगिरि पर नवीं से १८वीं सदी इसके समीप ही मांगायि-वसदि है जिसे 1315 में राजनर्तकी तक की कलाकतियाँ उपलब्ध होती हैं। चन्द्रगिरि स्थित चामण्डराय मांगायि ने बनवाया था। इसमें तीर्थंकर की रमणीय प्रतिमाएँ वसदि सर्वाधिक अलंकत है। इस नगर में लगभग 530 शिलालेख विराजित हैं। पश्चिम में सिद्धान्तवसदि है, जिसमें हमारे जैन - मिलते हैं। इनमें 274 चन्द्रगिरि पर, 172 विन्ध्यगिरि पर और सिद्धान्त-ग्रन्थ धवला, जयधवला, महाधवला, भूवलय आदि शेष नगर के आसपास मिले हैं। इनमें मराठी का एक प्राचीनतम सुरक्षित रखे गए थे। इसी के पास दानशाला-वसदि है। शिलालेख भी है। ये सभी शिलालेख जैनधर्म और संस्कति से श्रवणबेलगोला नगर के बीच एक कल्याण सरोवर है. संबद्ध है। चन्द्रगिरि की पार्श्वनाथ बस्ती में प्राप्त दो शिलालेख जिसका जीर्णोद्धार चिक्कदेव राजेन्द्र महास्वामी ने लगभग 1700 विशेष उल्लेखनीय है, जो भद्रबाह और चन्द्रगप्त की दक्षिण - ई. में किया। भण्डार-वसदि के दक्षिण में एक जक्की कटे यात्रा का विवरण देते हैं। और उनकी समाधि-स्थली होने का नामक सरोवर है, जिसका निर्माण जक्कीम्मव्वे ने 1120 ई. में संकेत करते हैं। कराया था। दक्षिण में एक चेनड कुण्ड भी उल्लेखनीय है, जिसे श्रवणबेलगोल का संबंध समाधिमरण से अधिक रहा है। चेनण्ण ने 1673 में बनवाया था। यहाँ पर साधक आध्यात्मिक मरण की कामना लेकर आते हैं। (4) जिननाथपुर यह सिलसिला १२वीं सदी तक चलता रहा, पर उसके बाद वह विरल हो गया। ऐसे स्मारक यहाँ लगभग 100 मिलते हैं। चन्द्रगिरि पर्वत के पीछे ब्रह्मदेव मंदिर के पास लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर जिननाथपुर नगर है, जिसे गंगराज सेनापति यह नगर दिगम्बर जैन-संस्कृति का जीवन्त केन्द्र रहा है। ने 1118 ई. में बसाया था। उसमें शांतिनाथ-वसदि होयसल इसमें गंगकला का उत्कृष्ट नमूना देखने को मिलता है। साथ ही कला की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इस मंदिर के गर्भगह में शांतिनाथ भरत और बाहुबली की अनूठी प्रतिमाएँ; कलात्मक, ऐतिहासिक, की साढ़े पाँच फीट ऊँची भव्य मूर्ति तथा बाह्य दीवारों पर यक्ष पौराणिक और सामाजिक महत्त्व वाले भित्तिचित्र, यक्ष-यक्षणियों धरणेन्द्र, सरस्वती, अंबिका, मन्मथ, चक्रेश्वरी आदि की अनेक की मूर्तियां भी दृष्टव्य है। कलात्मक मूर्तियाँ अंकति हैं। इसी वसदि के समीप एक अरेगल्ल- इस नगर की जैन-संस्कृति का संरक्षण करने का वसदि है, जिसमें पार्श्वनाथ की पाँच फीट ऊँची प्रभावली - उत्तरदायित्व चारुकीर्ति भट्रारक को रहा है। सर्वप्रथम इसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org