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________________ तेरापंथ की अग्रणी साध्वियाँ 85 -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-. सब दृष्टियों से पूर्ण योग्य समझकर गंगाशहर मर्यादा महोत्सव के अवसर पर सं० 2028 की माघ कृष्णा त्रयोदशी को युगप्रधान आचार्य प्रवर ने साध्वीप्रमुखा के रूप में आपका मनोनयन किया। उस समय आप से 417 साध्वियाँ रत्नाधिक थीं। आज भी लगभग 400 साध्वियां दीक्षा-पर्याय में ज्येष्ठ हैं। आपके नम्र व्यवहार को देखकर सब आश्चर्यचकित हैं / आप एक कुशल अनुशासिका, विज्ञ व्यवस्थापिका व सफल संचालिका होने के साथ-साथ सफल संपादिका व लेखिका भी हैं। आपकी सतत प्रवाहिनी लेखनी जनजीवन को नया चिन्तन, नव्यप्रेरणा व नूतन सन्देश देती है। आगम सम्पादन के गुरुतर कार्य में भी आप सतत संलग्न हैं। आचार्यप्रवर के प्रमुख काव्य-कालूयशोविलास, डालिमचरित्र, माणक महिमा, नन्दन निकुज, चन्दन की चुटकी भली का आपने सफलतापूर्वक सम्पादन किया। 'आचार्यश्री तुलसी दक्षिण के अंचल में आपकी अपूर्व कृति है और 'सरगम' में आपकी काव्यमयी प्रतिभा की एक झलक मिलती है जो भक्तिरस से ओत-प्रोत है। आपका समर्पण भाव अनूठा है / आचार्यश्री के हर इंगित को समझकर उसको क्रियान्वित करती हैं। नियमितता तथा संकल्प की दृढ़ता आपके जीवन की विशेष उपलब्धि है—जिसके फलस्वरूप इतने व्यस्त कार्यक्रम में भी आप जो करणीय है, वह करके ही रहती हैं। आपके महान् व्यक्तित्व और कर्तृत्व को शब्दों की सीमा में आबद्ध करना शक्य नहीं है। आप आने वाले सैकड़ों युगों तक जन-जन का मार्ग प्रशस्त करती रहेंगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211139
Book TitleTerapanth ki Agrani Sadhwiya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhusmitashreeji
PublisherZ_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf
Publication Year1982
Total Pages7
LanguageHindi
ClassificationArticle & Ascetics
File Size410 KB
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