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________________ है. प्राचार्य विजयवरसमजूद स्मारक मंच झांकी है। एक छोटे से लेख में इस अंथ स्ल व संपूर्ख विवरण देना समय नहीं। इस अंचरत्न में मालापुर के एक प्रतिभासंपन अस्पृश्य जुलाहे ने मनुष्य के नैतिक, पारिवारिक वानस्परिक जीवन वर्णन किया वह विश्व-साहित्य में अद्वितीय है। ग्रंथ में प्रत्येक देश के मानव-मन की उर्मियों का संदन है। संक्षेप में सादी रहन-सहन और उच्च विचारशक्ति इस ग्रंथ का ध्येय है। इस कान्य के छोटे छोटे पर तमिल प्रांत के छोटे-बड़े हर एक की जबान पर चढ़े हुए हैं। एक ओर इस ग्रंथ में श्रमण या संत संस्कृति के संतों के उपदेशों की भाँति जीवनोपयोगी उपदेश है, दसरी ओर वह भीष्म, चाणक्य और वात्स्यायन इत्यादि नीति विशारदों के साथ एक आसन पर बैठने योग्य है, तीसरी ओर अश्वघोष, कालिदास और सिद्धसेन दिवाकर जैसे वागीश्वरों की योग्यता का भावपूर्ण कल्पना सामर्थ्य इस काव्य में है। इस ग्रंथ को पढ़कर मन में यह भावना दृढीभूत हो जाती है कि साधुता, पौरुष, संयम, कष्टपूर्ण जीवन और अात्म-गौरव से बढ़ कर इस दुनिया में और कोई गुण नहीं, इनके विकास के लिए दुष्टता तथा पाप का परित्याग करना चाहिए। अब तो तिरुवल्लुवर का यह ग्रंथ केवल तमिलनाडु का ही नहीं, बल्कि सारे विश्व का है। कुरल की रचना कर तिरुवल्लुवर ने विश्व साहित्य को एक अमूल्य संपत्ति दी है। KIROWWW AASASS Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211120
Book TitleTiruvalluvar tatha unka Amar Granth Tirukkural
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrakumar Jain
PublisherZ_Vijay_Vallabh_suri_Smarak_Granth_012060.pdf
Publication Year1956
Total Pages9
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size711 KB
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