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________________ तिरुवल्लुवर तथा उनका अमर ग्रंथ तिरुक्कुरल සුදු इस खंड में एक पतिपरायणा साध्वी रमणी के शुद्ध श्राचरण तथा पवित्र हृदयोद्गारों का सजीव चित्र है। इसमें कहीं पर संयम, प्रगल्भता, उच्छृंखलता तथा अपवित्रता की गंध तक नहीं । यह प्रकरण पिछले साहित्यिक ग्रंथों में वर्णित अवैध परकीया प्रेम से कोसों दूर है। दोनों प्रेमी युगल का वर्णन होने पर भी इसमें अश्लीलता की छाया तक नहीं दिखायी देती । प्रायः देखा जाता है कि अनेक बार उपदेश व्यर्थ होते हैं । उपदेशों की इन व्यर्थता को देख कवि ने दो प्रेमी युगल के वर्णन द्वारा शुद्ध प्रेम-राज्य का वास्तविक स्वरूप उद्घाटित किया है और प्रेम-विधि के यथोचित निर्वाह के लिए एक पथ-प्रदर्शक प्रदर्श युवक युवतियों के सामने रखा है । पहले धर्म-खंड में सत्र जीवों के प्रति प्रेम करना, जीवदया, हिंसा, मांसभक्षणत्याग आदि विषयों का सुंदर वर्णन है । प्रेम का वर्णन करता हुआ कवि कहता है- 'प्रेम का द्वार बंद करनेवाली रुकावट कहाँ है ? एक दूसरे पर प्रेम करनेवालों की आँखों में छलकनेवाले आँसू उनके हृदय में लहरानेवाले प्रेम सागर को प्रकट करते हैं। प्रेम की मधुरता चखने के लिए ही यह जीव अपने आपको बार-बार इस हाड़-मांस के पिंजड़े में बंद कर लेता है।' दूसरों के हृदय को पीड़ा न पहुँचाने का उपदेश करता हुआ कवि कहता है' तुम्हारे एक शब्द से यदि किसी दूसरे व्यक्ति को दुख पहुँचा तो तुम्हारी अच्छाई जलकर खाक हो जायगी । म से जला हुआ जख्म भर जाता है, परंतु जिह्वा से जली हुई जगह कभी ठीक नहीं होती। जब दो मीठे बोल बोलकर आसानी से काम होने की संभावना होती है तब फिर मनुष्य क्यों कठोर वाणी का उपयोग करता है?' मित्रता का वर्णन करता हुआ कवि कहता है- 'जिस प्रकार कमर से बंधा हुआ वस्त्र हवा से उड़ने लगते ही हमारा हाथ उसे संभालने के लिए तुरंत आगे बढ़ता है, उसी प्रकार मित्र की लज्जा छिपाने के लिए सच्चा मित्र उस पर पर्दा डालता है।' दुश्मन को केवल ऊपरी व्यवहार से नहीं पहचाना जा सकता, यह बताते हुए कवि कहता है- 'तीर सीधा दीखता है परंतु हत्या करता है। वीणा टेढ़ी रहती है परंतु मधुर संगीत सुनाती है।' इसी प्रकार एक यह उद्धरण पढ़िये - 'फूलों की ताजगी से मालूम होता है कि उन्हें कितना पानी दिया गया होगा । उसी भाँति मनुष्य के वैभव से अंदाज लगाया जा सकता है कि उसने कितना परिश्रम किया होगा । " इस प्रकार तिरुवल्लुवर उदार विचार, परिस्थित्यनुकूल दृष्टांत और रसपूर्ण वर्णन करने में प्रसिद्ध है । तिरुवल्लुवर के डेढ़ सौ वर्ष बाद एक जैन कवि ने कुरल के संबंध में लिखा है 'कुरल ग्रंथ के दोहों की सीमा में असमर्थ भरा हुआ है। मानों राई को खोदकर उसमें सप्त सिंधु की विशालता को श्राद्ध किया गया है । ' तमिल साहित्य की महान् संत कवयित्री अव्वयार उसके बारे में कहती है- ' जिस प्रकार घास के पत्ते पर रहनेवाले प्रोसकरण में गगन को छूनेवाले ताड़वृक्ष का प्रतिबिंब होता है, उसी भाँति कुरल के इन छोटे पद्यों में महान् अर्थ भरा हुआ है ।' ऐसे थोड़े से उदाहरण यहाँ दिये जाते हैं। जिस आँख में मधुरता नहीं, वह गड़दा है। बड़े आदमियों की लक्ष्मी गाँव के बीच चौराहे पर फलों से झुके हुए वृक्ष की तरह होती है । केवल हंसी का नाम मित्रता नहीं, हृदय को हँसानेवाली सच्ची प्रीति ही मित्रता है। जो दुख से दुःखी नहीं होता वह दुःख को दुःखी करता । जो किसान बार-बार अपने खेतों पर नहीं जाता उसके खेत केली जीवन बितानेवाली पत्नी की तरह उससे नाराज हो जाते हैं। सिर्फ किसान ही अपने परिश्रम की रोटी खाता है। बाकी सारी दुनिया दूसरों के उपकारों से दबी है। दानों से परिपूर्ण भुट्टों की छाया में आराम करनेवाले हरे-भरे खेत जिस राज्य में हैं उसके आगे दूसरे राज्य के सिर झुक जायँगे। मेरा पेट खाली है यह शब्द सुनकर धरती माता हँसती है । कुरल के धर्म, अर्थ और काम खंडों का ऊपर जो दिग्दर्शन किया गया है वह उसकी केवल एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.211120
Book TitleTiruvalluvar tatha unka Amar Granth Tirukkural
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendrakumar Jain
PublisherZ_Vijay_Vallabh_suri_Smarak_Granth_012060.pdf
Publication Year1956
Total Pages9
LanguageHindi
ClassificationArticle & Literature
File Size711 KB
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