________________ चतुर्थ खण्ड / 306 की उपमा देते हुए फरमाया है कि महान् मोक्ष की एषणा करने वाले महर्षि संसार-समुद्र को तर जाते हैं। अतः भव्य आत्माओं को आगम प्रमाण और गुरुगम से स्वानुभूतिपूर्वक आत्मविज्ञान को यथार्थतः समझ कर उस पर सम्यक् श्रद्धा लाकर संसार-समुद्र से तिरने की कला-भेद विज्ञान को प्राप्त कर तदनुरूप पुरुषार्थ से मोक्ष की प्राप्ति करना चाहिए। यही अभीष्ट है। -टोंक 6. उत्तरा. अ.२३ गा.४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org